

खो गया था दुनिया के झंझावातों में आइना देखता हूँ, पर खुद की तलाश है, मुसाफिर हूँ. ये अनकही खुली किताब है मेरी... हर पल नया सीखने की चाहत में मुसाफिर हूँ.. जिंदगी का रहस्य जानकर कुछ कहने की खातिर अनंत राह पर चला मैं मुसाफिर हूँ... राह में जो कुछ मिला उसे समेटता मुसाफिर हूँ... ग़मों को सहेजता, खुशियों को बांटता आवारा, अल्हड़, दीवाना, पागल सा मुसाफिर हूँ... खुशियों को अपना बनाने को बेक़रार इक मुसाफिर हूँ... उस ईश्वर, अल्लाह, मसीहा को खोजता मैं मुसाफिर हूँ...
दिन सलीके से उगा, रात ठिकाने
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने
चंद लम्हों को ही बनाती हैं मु
जिंदगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से
इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला
रात जंगल में कोई शम्मा जलाने
फासला चाँद बना देता है हर पत्
दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से
शहर में सब को कहाँ मिलाती है
अपनी इज्ज़त भी यहाँ हँसने-हँसा
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दीवार-ओ-दर से उतर के परछाइयां बोलती हैं परदेस के रास्ते में लुटते कहाँ हैं मुसाफिर मौसम कहाँ मानता है तहजीब की बंदिशों को सुनने की मोहलत मिले तो आवाज़ है पतझडों में
कोई नहीं बोलता जब, तनहाइयां बोलती हैं
हर पेड़ कहता है किस्सा, पुरवाइयां बोलती हैं
जिस्मों से बाहर निकल के अंगडाइयां बोलती हैं
उजड़ी हुई बस्तियों में आबादियाँ बोलती हैं
TRIPLE COINCIDENCE ON A SIMPLE $20 BILL
It gets even better!! 9 + 11=$20!!