खो गया था दुनिया के झंझावातों में आइना देखता हूँ, पर खुद की तलाश है, मुसाफिर हूँ. ये अनकही खुली किताब है मेरी... हर पल नया सीखने की चाहत में मुसाफिर हूँ.. जिंदगी का रहस्य जानकर कुछ कहने की खातिर अनंत राह पर चला मैं मुसाफिर हूँ... राह में जो कुछ मिला उसे समेटता मुसाफिर हूँ... ग़मों को सहेजता, खुशियों को बांटता आवारा, अल्हड़, दीवाना, पागल सा मुसाफिर हूँ... खुशियों को अपना बनाने को बेक़रार इक मुसाफिर हूँ... उस ईश्वर, अल्लाह, मसीहा को खोजता मैं मुसाफिर हूँ...
Thursday, April 2, 2009
मैं आजाद होना चाहता हूँ
आज न जाने कैसे उस ब्लॉग पर गया। जखम ताजे हो गए। हर बार मेरे मन में कुछ सवाल उठते जब भी मैं किसी नए काम की शुरुआत करता। काफी दिनों से अपने अन्दर के उस जिज्ञासु पगले को एक बंद अंधेरे कमरे में कैद कर रखा था। आज तेज हवाओं ने उस दरवाजे की खिड़की खोली और आवाजें जोर जोर से बहार आने लगीं। फ़िर वही सवाल, किसके लिए काम कर रहे हो? अच्छा ये सब करके क्या पाओगे? तुम तो शान्ति चाहते थे न तो किसी ऐसी जागे क्यों नहीं जाते जहाँ तुम्हे कोई नही जनता? अपने लिए कब जीना शुरू करोगे? कब तक अपने दिमाग को सिर्फ़ जी हुजूरी और बाबूगिरी में लगोगे? ऐसे न जाने कितने सवाल बारी बारी दिमाग पर खटखटा रहे हैं... शोर हद से ज्यादा बढ़ता है तो कोशिश कर रहा हूँ क्यों न ये सवाल जवाब हमेशा की तरह यही कहकर टाल दिए जाएं की जिंदगी अपने लिए जी तो क्या किया? लगता है की कहीं स्वार्थी समाज की सोच से प्रभावित तो नहीं हो रहा हूँ। माँ बाप ने यही सोचा होता तो कहाँ होते हम? जिन्होंने बेशुमार प्यार लुटाया उनके लिए एक जिंदगी कुर्बान ही सही...पर ऐसी भी क्या जिंदगी जिसमे कदम कदम पर धोखा है और रास्तों पर सिर्फ़ और सिर्फ़ झूठ के ढेर लगे हैं....
ये जिंदगी भी अजीब है और उससे भी कहीं अजीब हैं ये मेरे सवालों का बेतरतीब सफर। हर बार मेरे लिए सन्यास का रास्ता प्रशस्त करने का मौका ढूंढ़ता है पगला। लेकिन सच कहूँ तो ये सवाल काफी संजीदा हैं...नहीं ये तो बचकाने सवाल हैं..होंगे। पर मेरे पास कोई जवाब नहीं। शायद जिंदगी का एक दिन ऐसा भी होगा जब मैं इन सवालों का दिल खोल जवाब दूँगा। मैं उदास नहीं, लिखने के बाद वैसे ही जिऊंगा जैसा दुनिया में चलता है। पर मौका मिला तो...देखते हैं।
शब्बखैर। । ।
कुछ ऐसा ही लिखा जाता है जब मन की आवाज़ शब्द में तब्दील होती जाती है...
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10 comments:
जब अपने आस पास परिस्थितियां अनुकूल नही होती तो मन बेचैन होने लगता है।अपने भीतर टटोलते रहो एक दिन सही रास्ता मिल जाएगा।
सही है ... कुछ ऐसा ही लिखा जाता है जब मन की आवाज़ शब्द में तब्दील होती जाती है...
आत्मचिंतन को शब्दों में बखूबी उकेरा है! एक दिन शांति जरूर प्राप्त होगी! लगे रहिये! थोड़ा इसे भी सुनिये!
बढ़िया मंथन किया.
badi kasmasahat hai is dil me, ai jaan jara dheere se nikal...
nik this life is a real challenge and unpredictable and so are we and its quite obvious that u r having such feelings ...what r we doing, for whom are we doing, will our lives go on like this forever bla bla bla......but its life and fight it back with the same spirit buddy................nicely portrayed such tough feelings....
agar har baat ka jawaab mil jaye to zindagi shayad berang si ho jayegi...in sawalo k beech jeene ko hi shayad "zindagi jeena" kehte hai...
acha likha hai...keep it up..
निखिल देखो संन्यास ही ultimate solution हो ये possible नहीं है .
तुमसे सच कहता हूँ एक time ऐसा होता है life में जब आप सोचते है की life के बारे में आप ही सोचते है, बाकि सब लोग पता नहीं कैसे आँख बंद कर के जिए जा रहे है; पर नहीं ये सच नहीं है. कभी गौर से देखो तो पता लगता है की सभी के साथ यही प्रॉब्लम है हाँ कई लोग जादा सोचना नहीं चाहते. शायद थक जाते है सोच सोच के और बस सिम्पली इस लाइफ को स्वीकार कर लेते है जैसी भी है. पता है निखिल ये जो स्वीकार करना है ना ये बड़ी चीज़ है संन्यास की अपेक्षा. जैनेन्द्र कुमार ने लिखा है की "प्रतिमा होती हो विरल पर इससे वो सनातन है ये सत्य नहीं है ये जो स्थिति की सनातनता है न ये साधारढ़ हो के रहने में है" बात इसमें कुछ नहीं, कहने वाले कहते है की नहीं होना हमें सनातन. हम तो बस जल के मिट जाना चाहते है तो मेरा मानना ये है की बात सिर्फ जल के मिटने की नहीं है क्योकि जल के कई सारे मिट गए और शायद संसार उन्हें याद भी करता है लेकिन क्या उसी प्रकार याद करता है जिस तरह वो चाहते थे? मैं सिर्फ इतना कहूँगा की शायद बड़े बड़े काम करने के चक्कर में हम मूलभूत काम भूल गए है 'जीवन जीना' आदमी भले ही चाहे की उसके बाद उसे इस तरह याद रखा जाए उस तरह याद रखा जाए पर इन सब बातो में नीचे की बात यही है की उसे वो काम कभी नहीं चचोड़ना चाहिए जिसमे उसे आतंरिक प्रसन्नता मिले बस जीवन का यही उद्देश्य है ठीक उसी प्रकार जैसे हरिवंश राय बच्चन ने कहा था की सृजन की छमता अपने आप में ही सृजन का पुरस्कार है, उसी प्रकार जीवन अपने आप में जीने का पुरस्कार है. इसीलिए खुद जियो औरो को भी जिलाओ, खुद हंसो औरो के चेहरे पर भी हंसी दो और ये सब कुछ इस प्रकार नहीं की तुम दूसरो पर एहसान कर रहे हो बल्कि इस प्रकार की तुम खुद पर एहसान कर रहे हो. इस प्रकार की वो तुम्हे उस ख़ुशी का मौका दे रहे है. लोगो को प्यार करो न सिर्फ उनकी अच्छाई के लिए पर उनकी बुराई के लिए भी. हाँ ये जरूर है की इसमें ऐसे भी लोग होंगे जो तुम्हारा फायदा उठाने की कोशिश करेंगे तो ये सीमा तुम्हे निर्धारित करनी है की तुम कितना घटा उठाने के लिए तैयार हो पर इसके लिए उन्हें blame मत करना और ये मान के चलना की तुम्हारे साथ ऐसा हो सकता है. जब तुम बाज़ार जाते हो तो हर चीज़ की एक कीमत होती है इसी प्रकार दुनिया के बाज़ार में भी ख़ुशी की कीमत हूति है. तो उन लोगो के लिए जियो जिन्हें तुम प्यार करते हो पर return की उम्मीद करना उनके साथ ज्यादती होगी. At last मैं यही कहूँगा की be happy. जी भर के जियो.
sorry naam likna bhool gaya..
Neeraj :)
God bless you....
अरस्तु ने कहा है, "मनुष्य जन्म से ही बन्धनों में बंधा है.......।"
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