कल पूरा दिन उत्तर प्रदेश के एक गाँव में गुजरा। शहर की सड़कों से गुज़रते हुए मैं बेसब्री से गाँव के खड़न्जों वाली सड़क और पगडंडियों का इंतज़ार कर रहा था। वो मिलतीं उससे पहले ही मेरी तमन्ना पूरी होने लगी। लेकिन गाँव अभी काफी दूर था। मीलों तक का सफ़र खडंजानुमा सड़क पर जारी रहा और फिर एक गाँव आया। लोग हमें देखते ही कयास लगाने लगे कि हम या तो सरकार की तरफ से आये हैं या किसी प्रधान के प्रचार के लिए। खैर, हमारा काम एकदम अलग था।
हमने उनसे बातचीत शुरू की, उन्हें अपना मकसद समझाया और चल दिए गाँव के भीतर। हमें एक एक घर जाना था, परिवार के लोगों से बात करनी थी और कुछ तथ्य जुटाने थे। लोगों से बातचीत शुरू हुई, कुछ लोग बहुत खुश हुए तो कुछ हमें समझना ही नहीं चाहते थे। ऐसे दुत्कारा मानो हम कोई सरकारी मुलाजिम या किसी पार्टी के प्रचारक थे। उनका गुस्सा जायज़ था, इसलिए हम सुनते और समझाते रहे। मैं गाँव के दूसरे सिरे की ओर चल दिया, वहां कई घरों में गया। वहीं एक प्रधान के उम्मीदवार का भी घर था. वो भी इत्तेफाक से मिल गया. उससे भी बातचीत की. वो बात कमोबेश जल्दी समझ गया. फिर शुरू हुआ पूछताछ का सिलसिला. उसकी पत्नी का नाम पूछा तो बेटा भी तपाक से बोल पड़ा, लेकिन तब तक बाप कुछ और नाम बता चुका था। दोनों एक दूसरे को देखने लगे, और मैं उन दोनों को देखने लगा. समझ नहीं पाया कि माज़रा क्या है. वजह पूछी तो बताया गया, नाम बदल लिया। फिर सवाल किया तो सकुचाते हुए उस ग्रामीण ने कहा कि वोटर लिस्ट में जो नाम आया है वही रख दिया है मालकिन का नाम।
खैर, मेरे समझाने का कोई फायदा नहीं था, सच तो ये था कि महिला का नाम ३५ साल कि उम्र में बदल चुका था। अब वो भी खुद को नए नाम से ही पहचानने की कोशिश कर रही थी। आगे बढ़े तो ऐसे कई मामले सामने आये। प्रदेश और देश में गाँव की तस्वीर साफ़ नजर आने लगी। ये भी समझ में आ गया कि आखिर इसके पीछे वजह क्या है, और कौन जिम्मेदार है. गाँव के ही एक साथी से पूछा तो उसने कहा कि, गाँव वालों को तो जानकारी नहीं है, लेकिन जिन्हें इस बात की जानकारी थी वो भी तो प्रधानों के घर बैठकर गलत सलत नाम लिख जाते हैं। अब जो नाम वोटर लिस्ट में आ गया वही नाम हो गया।
अँधेरा गहराने तक मेरा काम और गाँव की यात्रा भी तो खत्म हो गई, साथ के एक पत्रकार से कहा कि अपने जिले संवाददाता से ये खबर करने को कहिये। उन्होंने भी बड़ी गर्मजोशी से मंजूरी दी लेकिन एक सवाल बार बार उठता रहा कि उसके खबर लिखने से भी क्या होगा? ऐसे कितने लोग होंगे यहाँ जिन्हें अपना असली नाम याद होगा? कितने ऐसे होंगे जिन्होंने अपना सही नाम हमें नहीं बताया होगा? कितने गाँव के लोग अपना नाम बदल चुके होंगे? हो सकता है अगले सेन्सस में फिर नाम बदल जायें। कोई कमलावती, इरावती बनकर फिर राजकुमारी बन जाए।
हमने उनसे बातचीत शुरू की, उन्हें अपना मकसद समझाया और चल दिए गाँव के भीतर। हमें एक एक घर जाना था, परिवार के लोगों से बात करनी थी और कुछ तथ्य जुटाने थे। लोगों से बातचीत शुरू हुई, कुछ लोग बहुत खुश हुए तो कुछ हमें समझना ही नहीं चाहते थे। ऐसे दुत्कारा मानो हम कोई सरकारी मुलाजिम या किसी पार्टी के प्रचारक थे। उनका गुस्सा जायज़ था, इसलिए हम सुनते और समझाते रहे। मैं गाँव के दूसरे सिरे की ओर चल दिया, वहां कई घरों में गया। वहीं एक प्रधान के उम्मीदवार का भी घर था. वो भी इत्तेफाक से मिल गया. उससे भी बातचीत की. वो बात कमोबेश जल्दी समझ गया. फिर शुरू हुआ पूछताछ का सिलसिला. उसकी पत्नी का नाम पूछा तो बेटा भी तपाक से बोल पड़ा, लेकिन तब तक बाप कुछ और नाम बता चुका था। दोनों एक दूसरे को देखने लगे, और मैं उन दोनों को देखने लगा. समझ नहीं पाया कि माज़रा क्या है. वजह पूछी तो बताया गया, नाम बदल लिया। फिर सवाल किया तो सकुचाते हुए उस ग्रामीण ने कहा कि वोटर लिस्ट में जो नाम आया है वही रख दिया है मालकिन का नाम।
खैर, मेरे समझाने का कोई फायदा नहीं था, सच तो ये था कि महिला का नाम ३५ साल कि उम्र में बदल चुका था। अब वो भी खुद को नए नाम से ही पहचानने की कोशिश कर रही थी। आगे बढ़े तो ऐसे कई मामले सामने आये। प्रदेश और देश में गाँव की तस्वीर साफ़ नजर आने लगी। ये भी समझ में आ गया कि आखिर इसके पीछे वजह क्या है, और कौन जिम्मेदार है. गाँव के ही एक साथी से पूछा तो उसने कहा कि, गाँव वालों को तो जानकारी नहीं है, लेकिन जिन्हें इस बात की जानकारी थी वो भी तो प्रधानों के घर बैठकर गलत सलत नाम लिख जाते हैं। अब जो नाम वोटर लिस्ट में आ गया वही नाम हो गया।
अँधेरा गहराने तक मेरा काम और गाँव की यात्रा भी तो खत्म हो गई, साथ के एक पत्रकार से कहा कि अपने जिले संवाददाता से ये खबर करने को कहिये। उन्होंने भी बड़ी गर्मजोशी से मंजूरी दी लेकिन एक सवाल बार बार उठता रहा कि उसके खबर लिखने से भी क्या होगा? ऐसे कितने लोग होंगे यहाँ जिन्हें अपना असली नाम याद होगा? कितने ऐसे होंगे जिन्होंने अपना सही नाम हमें नहीं बताया होगा? कितने गाँव के लोग अपना नाम बदल चुके होंगे? हो सकता है अगले सेन्सस में फिर नाम बदल जायें। कोई कमलावती, इरावती बनकर फिर राजकुमारी बन जाए।