Friday, November 28, 2008

वतन पर मिटने वालों के बाकी कितने निशां होंगे....

शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मिटने वालों का बाकी यही निशां होगा।।
आप कुछ यही सोच रहे हैं ... पर कितने दिनों के लिए आइये जानते हैं..
उनकी शहादत रंग लाती दिख रही है४४ घंटे बाद संजय करकरे, अशोक कमते और विजय सालसकर की मौत थोड़ी तो काम आई। नरीमन हाउस आतंकियों को मार गिराने के बाद लोगों की खुशी सड़क पर दिखने लगी। पर इस दौरान उन्हें ये किसी ने समझाने की कोशिश नहीं की कि १२५ लोग मरे भी हैं। ३०० लोग हॉस्पिटल में ज़िन्दगी कि लड़ाई लड़ रहे हैं। भारत माता की जय कैसे हो सकती है जबकि उसके कई जाबांज सिपाही अपनी जान पर खेल गए। अरे उन्हें शर्म आनी चाहिए कि ऐसी वारदात हो गई। उन्ही के बीच रहे लोगों ने सुनियोजित प्लान के तहत माँ का दिल चलनी कर दिया। जाने कितनी पत्नियाँ बेवा हो गईं। कितने परिवार बसने से पहले उजड़ गए। ये मीडिया किसकी तारीफ कर रहा है। समझ नहीं आता। क्यों हम ख़ुद ही अपनी कमजोरी छिपाते हैं । कोई ये नहीं सोच रहा है कि आख़िर ऐसा कैसे हो गया। ४० आतंकियों ने हिला के रख दिया। ५०० कमांडो बुलाये गए उसमे भी एक मेजर और एक जवान शहीद हो गए। उनकी शहादत पर भारत माता की जय करने वाले कल उन्हें भूल जायेंगे। फ़िर सब अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जायेंगे। और फ़िर ऐसा कुछ होगा जिसके लिए सब एक टीवी पर नज़र गड़ाए घंटों बैठे रहेंगे और सरकार को गरियाएंगे। मित्रों जरा अपने ज़मीर से पूछिये की कैसा महसूस होता है। हालाँकि बहुत मुश्किल है। कोशिश कीजिएगा। खुश होने की जरुरत नहीं है। जरा ये तो सोचिये कि ये हुआ कैसे? कौन जिम्मेदार है। हम ख़ुद या सरकार और पुलिस। शायद दोनों..क्योंकि सबको अपनी फ़िक्र है। अगला मरता है तो मरे। भगत सिंह भी बगल के घर में पैदा हो। इस मानसिकता से बहार निकालिए। इस देश को कोई सरकार नहीं बचा सकती। हमें ही कुछ करना है। और मैं कुछ दिनों बाद अपने सवाल का जवाब दूंगा.जो आप लोगों की ज़िन्दगी का रुख बताएगी। ईशवर उन्हें खुश रखे जिनके अपने शहीद हो गए। थोडी शर्म बाकि हो तो आतंक का सफाया करिए। जो संदिघ्ध दिखे उसकी ख़बर पुलिस को कीजिये। शायद हालत सुधरें। प्रधानमंत्री जी ने अगर अफज़ल गुरु की फांसी में लंगड़ न मारा होता तो शायद ये न होता। किसी आतंकी को बख्शना अपने लिए ही बारूद इकठ्ठा करना है। हम ख़ुद ही अपने लिए मौत का सामान जुटा रहे

Tuesday, November 18, 2008

मैं क्यों रोता? अनुभव ही तो सिखाते हैं.



आज मैं एक नए घर का सदस्य हूँ. थोड़ा छोटा है॥ यहाँ कुछ पुरानी बातें याद आ रही हैं,
आइये चलते हैं चंद यादों कि सैर पे.........
मेरे पुराने आशियाने में ये बात बहुत प्रचलित थी। द शो मस्ट गो ऑन वाली बात। मुझे लगता था बात तो सही है लेकिन कुछ तो असर होता होगा। लेकिन किसी ने कुछ भी किया हो मैंने तो दिल से चाहा था इस जगह को। शायद कुछ लोग मेरी खुशी से नाखुश थे। उन्होंने तोड़ने की कोशिश की, लोगों ने देखा, उनका साथ भी दिया और आख़िरकार मैं टूट गया। मन से नहीं। बस उनसे टूट गया। मुझे दुःख हुआ। रोना भी आया। पर वहां तो मुझसे अलग होने का कोई गम नहीं था। न कोई रोया न कोई हँसा। जिसने आंसू बहाए वो तो अपना था ही। तो मई भी क्यों आंसू बहता. क्या मेरे आंसुओं का कोई मोल नहीं है. शायद मैंने उस जगह को दिल दे दिया था। लग कर मेहनत की थी। कुछ आशा थी। उन्होंने वो भी तोड़ दी। लगा जैसे मुझे किसी ने ठग लिया हो। हो सकता है उन्हें भी ऐसा लगा हो की मैंने उन्हें ठग लिया। पर बातें ठगने से ज्यादा आगे जा चुकी थी। शायद किसी ने ये जानने की कोशिश नहीं की होगी कि मैंने किन हालत में वो निर्णय लिया होगा। कुछ भी हो, आज जो कुछ भी हूँ उन्ही कि बदौलत हूँ। ये बात मानने में मुझे कोई गुरेज नहीं है।
खैर आज मैं नई जगह हूँ, ओहदा थोड़ा बड़ा है, लोग भी अच्छे ही हैं। वहां भी काफी कुछ सीखा था यहाँ भी सीख रहा हूँ। हाँ यहाँ एक काम नहीं कर रहा हूँ...रिश्ते नहीं बना रहा हूँ. शायद हिम्मत नहीं बची है अब. या यूँ समझिये कि ग़ालिब दुनिया कि रीत समझ चुका है. शायद आज के बाद किसी पे यकीं न करूँ, जरुरत भी नहीं है। बाकी तो बहुत कुछ है पर मेरी इस अनकही का जवाब वक्त दे यही बेहतर होगा।

Saturday, October 25, 2008

Na samajh laya gam to ye gam hi sahi


Zindagi jane kis or ja badh rahi hai. jane humne kya gunah kiye ki khushiyan paas aane ko taiyaar nahin hain. humne to hamesha e hi khushiyan mangi hain. 18 baras hone ko hain..maine  khuda se har aarzu, har tamanna, har chaah aur har prarthana me ek hi cheez mangi hai .  lekin dil, dimag aur taqdeer gam ka haath pakad ke mere hath me jabardasti thama dete hain. hum aaj tak apni galti nai jaan paye. jaan se jyada mehnat ki hai. Apni aukat se jyada logon ki madad ki. Aaj lagne laga hai ki jindagi sapnon ke vayas ho chali hai. har raat sapne dekhte khatm hoti hai aur har din sapnon ko amlijama pahnane me gujar jate hain. na kisi ke liye jeene ka man karta hai na khud ke liye. shyad khuda ko hamara dard nahin dikhta. wo bhi wahi dekhta hai jitna duniya ka koi aur bashinda. uski aur meri relationship pe shyad ye lines fit baithti hain.
"ankhon me hain aansu..honthon pe dard soya hai
dekhne wala kya jane ki hansne wala kitna roya hai."

Wednesday, October 1, 2008

कब तक किसी के नाम पर ....

कब तक किसी का नाम लेकर खून बहाओगे? कब तक ख़ुद को उस नाम की चादर में छिपाओगे? और कब तक अपने कर्मों से अपने साथ जुड़ी कॉम को खौफ देते रहोगे? आख़िर तुम क्या कर पाओगे ? अंदाजा है तुम्हे? शायद नहीं तभी तो तुम ये सोचे बिना धुआं फैला रहे हो कि नहीं ठहरती। न तुम्हारे अरमानों के लिए न किसी कि मौत का मातम मानाने के लिए। कोई तुम्हारा गुस्सा किसी और बेगुनाह पर उतर देगा तो किसका भला होगा? न उसका न खुदा का। आपके नाम का पुछल्ला कितने bujurgon की नींद haraam करता है, पता है ? कोई नाम insaniyat के नाम से बड़ा नहीं है। और ये सच है। yakin कर लो तो ही बेहतर है। न jane कल ये hasin duniya अपने shabab पर हो न हो!

Saturday, September 20, 2008

जाने क्यों? मेरी अनकही पार्ट-1


आप किसी न किसी के लिए अपनी खुशियाँ दरकिनार करते होंगे। किसके लिए? क्या उस खास के लिए आपकी खुशियाँ की कोई कीमत है? मुझे तो लगता है कि जिनके लिए आप अपनी खुशियों का गला घोंटते हैं, वे उसे कुछ और कहते हैं.... अहसान। अगर आप किसी बड़े को खुशी देने की कोशिश करिए तो आपका छोटापन राह में खड़ा हो अर्थ का अनर्थ कर देता है। या फ़िर ये वक्त कि बात होती है। एक समय के बाद आपके दर्द सिर्फ़ आप पर छोड़ दिए जाते हैं। यही रीत है इस दुनिया की, मुझे तो यही लगता है की ये दुनिया दिखावा पसंद करती है। किसी को आपके दर्द का एहसास तब तक नही होता है जब तक उन्हें हम अपने घाव न दिखाएं। जब मै ये कहता हूँ तो रगों में बहता खून सर्द होने लगता है, जमने लगता है। जाने क्यूँ? पर क्यों हम किसी को ग़लत समझते हैं...? जरा सोचिये...क्या ये सही नही है? क्या जरुरी है कि हमेशा अपनी मोहब्बत दिखाई जाए? उन खास लोगों के लिए इज्जत का नजराना पेश किया जाए? बार बार सबके सामने एहसासों को बाजारू बना दिया जाए? हर कोई एक सा नही होता। तो क्या जरुरी है ख़ुद को खोलना?
... मुझे तो कभी कभी ऐसा ही लगता है। आपको?

Tuesday, September 16, 2008

उनकी अनकही....


बंगलुरु, अहमदाबाद के बाद अब दिल्ली भी दहल गई। और तो और गुप्तचर एजेंसियों की चेतावनी के बाद हुए सीरियल ब्लास्ट। कितनी आसानी से २५ लोगों ने जान गँवा दी और सैकड़ों लहूलुहान होकर अपनी किस्मत पर रोते रह गए। बेचारे बुजुर्ग कोरों से आँसू तक न निकला जवान बेटे का हाल देखकर। बच्चे अपने पापा का इंतजार करते करते सो गए लेकिन पापा तो अस्पताल पहुँचे। गलती किसकी है? सुरक्षा के इस कदर कड़े इंतजाम के बाद भी इतनी बड़ी चूक का जिम्मेदार किसे ठहराया जाए? किसके पास है इन सवालों के जवाब? सुरक्षा एजेंसियों के पास? उनका काम तो लगता है चेतावनी देना भर रह गया है। जब दिल्ली का सीना धुआं-धुआं हो उठा तब ये एजेंसियाँ कहाँ थीं? और पुलिस? पता नहीं। राजनेताओं ने भी ३० सेकंड की प्रेस कॉन्फ्रेंस में रटी बातें दोहरा दीं। उनका क्या जाता है? जेड़ सिक्यूरिटी में उनको कोई डर नहीं है। मंत्रीजी का तमगा भी तो है। बयानबाजी सबको आती है लेकिन न सुरक्षा एजेन्सी बोलेगी न ही मंत्रालय इस हादसे का जवाब से पाएगा। मीडिया को भी टीआरपी की पड़ी है। हर कोई एक्सक्लूसिव खोजने में जुटा है फ़िर चाहे उसके लिए सामाजिक दायित्वों का गला ही क्यो न घोंटना पड़े। इन जिम्मेदारों में किसीने उनका दर्द महसूसा जिनके लोग शोपिंग के बाद घर नहीं गए। जो ऑटो से उतरने से पहले ही सफर को अलविदा कह गए। उनके परिवार की आंखों में फूटते सवालों का कोई जवाब है? कोई जवाब हो तो दीजिए।!!!!!!!टीआरपी और सिर्कुलेशन के परे इंसानियत भी एक चीज़ होती है। कभी सोचिएगा! कोई जवाब हो तो जरुर दीजिएगा! मुझे भी ख़ुद को भी।

उनकी अनकही

Saturday, September 13, 2008

आज कल कुछ अनकही .....


Kai dino se soch raha tha ki patrakaron ka kaam kya hota hai? kya ye ek aisa proffesion hai jahan aap auron se behtar samajhte hain khud ko...complacency lani padti hai ki khud hi aa jati hai..aap kise khush karne ki koshish karte hain? khud ko kar pate hain? jo khud ko bahut bada top samjhte hain wo kitna khush hain apne kaam se? unki jindgi kaisi hai? fir woh print ke hon ya electronic ke,, koi farq nai padta hai janab..khali hai...sab khali hai...kahi trp to kahi circulation ka khel hai....aur hum sab us khel ke liye pyade mukarrar kiye gaye hain...kabhi nai socha tha ki hum jis patrakarita ke sapne sanjote the wo is kadar mitti me mil jayenge...aur rah jayenge to sirf gubar aur khwab...????
antas viram...........

आज कुछ छिपता नहीं


लगता
है सब कुछ दिखने लगा हैभविष्य, भूत...सब कुछकुछ नहीं छिपता है हमसे और ही इस दुनिया सेफ़िर भी सब कोई अपना अपना चेहरा कैमरे के सामने से हटा रहा हैअब कोई माइक पकड़ने को तैयार नहीं है

Thursday, September 4, 2008

अनकही

सबके मन में ऐसी बातें होती हैं जो वे किसी से कह नही पाते..कोई सुनना नहीं चाहता तो किसी को हम सुना नहीं पाते...यही तो है अनकही!
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