खो गया था दुनिया के झंझावातों में आइना देखता हूँ, पर खुद की तलाश है, मुसाफिर हूँ. ये अनकही खुली किताब है मेरी... हर पल नया सीखने की चाहत में मुसाफिर हूँ.. जिंदगी का रहस्य जानकर कुछ कहने की खातिर अनंत राह पर चला मैं मुसाफिर हूँ... राह में जो कुछ मिला उसे समेटता मुसाफिर हूँ... ग़मों को सहेजता, खुशियों को बांटता आवारा, अल्हड़, दीवाना, पागल सा मुसाफिर हूँ... खुशियों को अपना बनाने को बेक़रार इक मुसाफिर हूँ... उस ईश्वर, अल्लाह, मसीहा को खोजता मैं मुसाफिर हूँ...
Tuesday, September 16, 2008
उनकी अनकही....
बंगलुरु, अहमदाबाद के बाद अब दिल्ली भी दहल गई। और तो और गुप्तचर एजेंसियों की चेतावनी के बाद हुए सीरियल ब्लास्ट। कितनी आसानी से २५ लोगों ने जान गँवा दी और सैकड़ों लहूलुहान होकर अपनी किस्मत पर रोते रह गए। बेचारे बुजुर्ग कोरों से आँसू तक न निकला जवान बेटे का हाल देखकर। बच्चे अपने पापा का इंतजार करते करते सो गए लेकिन पापा तो अस्पताल पहुँचे। गलती किसकी है? सुरक्षा के इस कदर कड़े इंतजाम के बाद भी इतनी बड़ी चूक का जिम्मेदार किसे ठहराया जाए? किसके पास है इन सवालों के जवाब? सुरक्षा एजेंसियों के पास? उनका काम तो लगता है चेतावनी देना भर रह गया है। जब दिल्ली का सीना धुआं-धुआं हो उठा तब ये एजेंसियाँ कहाँ थीं? और पुलिस? पता नहीं। राजनेताओं ने भी ३० सेकंड की प्रेस कॉन्फ्रेंस में रटी बातें दोहरा दीं। उनका क्या जाता है? जेड़ सिक्यूरिटी में उनको कोई डर नहीं है। मंत्रीजी का तमगा भी तो है। बयानबाजी सबको आती है लेकिन न सुरक्षा एजेन्सी बोलेगी न ही मंत्रालय इस हादसे का जवाब से पाएगा। मीडिया को भी टीआरपी की पड़ी है। हर कोई एक्सक्लूसिव खोजने में जुटा है फ़िर चाहे उसके लिए सामाजिक दायित्वों का गला ही क्यो न घोंटना पड़े। इन जिम्मेदारों में किसीने उनका दर्द महसूसा जिनके लोग शोपिंग के बाद घर नहीं गए। जो ऑटो से उतरने से पहले ही सफर को अलविदा कह गए। उनके परिवार की आंखों में फूटते सवालों का कोई जवाब है? कोई जवाब हो तो दीजिए।!!!!!!!टीआरपी और सिर्कुलेशन के परे इंसानियत भी एक चीज़ होती है। कभी सोचिएगा! कोई जवाब हो तो जरुर दीजिएगा! मुझे भी ख़ुद को भी।
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3 comments:
jabardast dost lage raho bahoot badhiya
Badhai
Pahle ye dhamake aur agle din delhi mein hua wo encounter jisme 1police officer shaheed ho gye....TRP aur circulation ke pare insaniyat hoti hai is bat se main bhi ittefaq rakhti hoon....par aaj ki politics ko maddenazar rakhte hue main ye dawe ke sath keh skti hoon ki ye media hi tha jisne unhe "shaheed" ka darja dilaya...warna ye neta yahan bhi apni vote ki rajniti ke liye police walo ko humesha ki tarah galat thehra dete...
agar hum iska hissa hain to abhi hum nahi samagh paye hain ki saara khel sirf paise ka hain kyo ki TRP aur circulation ki vajah se hi lakho log do waqt ki roti ka paate hain. hum bus yeh kar sakte hain jis kichad main hum utre usme sirf kamal ke phool ki taraf hi humara dhayan ho.
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