Wednesday, October 1, 2008

कब तक किसी के नाम पर ....

कब तक किसी का नाम लेकर खून बहाओगे? कब तक ख़ुद को उस नाम की चादर में छिपाओगे? और कब तक अपने कर्मों से अपने साथ जुड़ी कॉम को खौफ देते रहोगे? आख़िर तुम क्या कर पाओगे ? अंदाजा है तुम्हे? शायद नहीं तभी तो तुम ये सोचे बिना धुआं फैला रहे हो कि नहीं ठहरती। न तुम्हारे अरमानों के लिए न किसी कि मौत का मातम मानाने के लिए। कोई तुम्हारा गुस्सा किसी और बेगुनाह पर उतर देगा तो किसका भला होगा? न उसका न खुदा का। आपके नाम का पुछल्ला कितने bujurgon की नींद haraam करता है, पता है ? कोई नाम insaniyat के नाम से बड़ा नहीं है। और ये सच है। yakin कर लो तो ही बेहतर है। न jane कल ये hasin duniya अपने shabab पर हो न हो!

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