Friday, March 27, 2009

चलते चलते यूँ ही कुछ मिल गया है....

'एक ही काम है जयो तुम्हें करना चाहिए - अपने में लौट जाओ। उस केन्द्र को ढूंढो जो तुम्हें लिखने का आदेश देता है। जानने की कोशिश करो कि क्या इस बाध्यता ने तुम्हारे भीतर अपनी जड़ें फैला ली हैं ? अपने से पूछो कि यदि तुम्हें लिखने की मनाही हो जाए तो क्या तुम जीवित रहना चाहोगे ?...अपने को टटोलो...इस गंभीरतम ऊहापोह के अंत में साफ-सुथरी समर्थ 'हाँ'' सुनने को मिले, तभी तुम्हें अपने जीवन का निर्माण इस अनिवार्यता के मुताबिक करना चाहिए।'
ये एक मशहूर लेख़क रिल्के की कही बात है।

4 comments:

Ashish Khandelwal said...

सही कहा आपने .. हर लेखक की यही स्थिति है-- उस केन्द्र को ढूंढो जो तुम्हें लिखने का आदेश देता है।

अनिल कान्त said...

aap apne test ka colour change kar dijiye dikhayi nahi deta kuchh
is colour mein

Anonymous said...

accha kaha hai jisne bhi kaha hai.........

Ajayendra Rajan said...

jai ho baba nikhil maharaj ki...jai ho...

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