मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर………..
इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ़ जाती ।
मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और….
जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ़ जाती ।
यूँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और….
जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैरान होती ।
ये सिलसिला चलता रहता…..
फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पूछा………
” तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? “
तब मैंनें कहा…………….
मुझे पता है कि एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे
जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ़ पायेगी,
तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं……
तब भी यूँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुंचूंगा…….
एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराऊंगा ……….
बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढ़ा दूंगा ।
ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाऊंगा ………
मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी……
मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी...
(ये मेरी रचना नहीं है....कहीं मिली, मुझे इसे देख आइना सा लगा। और मैंने इसे यहाँ रख लिया...)
7 comments:
इस अच्छी रचना को पढ़वाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया
मुझे पता है कि एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे
जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ़ पायेगी,
तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं……
तब भी यूँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुंचूंगा…….
एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराऊंगा ……….
बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढ़ा दूंगा ।
ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाऊंगा ………
sundar lines hai,
pata hai nikhil hum humesha zindagi se jitate hai par khud se haar jate hai.
Zindagi ke rahasya ko samjh pana mushkil hai. ab hum sochate hai ki zindagi ko jeetane ya harane se kuch nahi hoga.. bas zindagi ka sath nibhan chahiye hume. jyoti
zindagi me itna achchha karma kare ki moksh ko prapt karein taki zindagi se ladai hi khatm ho jaye.
aapki ek or behtareen khoj..
moksh ke path par agrasar hon..
shanti!
really very inspiring...
really inspiring.....
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