Tuesday, October 20, 2009

वो अजीब एहसास

रात के दो बज रहे थे शायद, ऑफिस से वापस लौट रहा था, इस वक्त इंदिरा नगर के लिए जल्दी ऑटो नहीं मिलते इसलिए बादशाह नगर तक एक साथी के साथ आया और वहां ऑटो का वेट करने लगा। काफी देर इंतज़ार करने के बाद आखिरकार मुझे अगली सीट पर बैठना पड़ा। मैं यहाँ बैठने से बचता हूँ क्योंकि यहाँ बैठना खतरे से खली नहीं होता और दूसरा मीटर पीठ में काफी चुभता है। खैर, मैं बैठ गया। लेखराज से इंदिरा नगर के लिए ऑटो मुड़ा ही था कि एक बुजुर्ग किसी तरह सड़क पार करके आए और ऑटो वाले से बोले बैठा लो, जगह पहले ही नहीं थी। मुझसे उनकी हालत देखी नहीं गई और मैं ड्राईवर के दूसरी ओर बैठ गया। शायद उतनी जगह में एक पैर डालना भी मुश्किल था पर उनकी हालत देखकर उन्हें सड़क पर किसी दूसरी ऑटो का इंतज़ार करने के लिए छोड़ने के एहसास से तो बेहतर था मैं किसी तरह उसमें दुपक के बैठता। उसके बाद जब तक घर के पास नहीं पहुँच गया मैं यही सोचता रह गया की मैंने कोई परोपकार किया है या ये हमारी ड्यूटी होनी चाहिए। दरअसल जब हम स्कूल में थे तो रोज डायरी में लिखना होता था कि आज क्या परोपकार किया और हम ऐसे काम करने कि तलाश में रहते थे॥ अचानक वो मोड़ आ गई जहाँ मुझे उतरना था और मैंने उनको देखा और ऑटो वाले को पैसे देकर मुड़ गया। एक अजीब सा संतोष था। शायद कुछ असली किया था इसलिए। वैसे तो ज़िन्दगी ही दिखावा लगने लगी है...ऐसे लम्हे हमें इंसान होने का अहसास कराते हैं...ड्यूटी हो या उपकार..क्या फर्क पड़ता है। और मैं चैन की नींद सोया..

6 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा कार्य किया आपने..आपको संतोष भी मिला..बस!!

संगीता पुरी said...

उपकार नहीं .. ये ड्यूटी होनी चाहिए हमारी .. ईश्‍वर ने आखिर हमें समर्थ क्‍यूं बनाया .. सोंचना चाहिए !!

Mukul said...

kya baat hai nikhil
samvedna ke aar baj gaye seedha aur saarthak maza aaya padhkar aur jaan kar bachhe bade ho gaye aur soch bhee
badhai

Nikhil Srivastava said...

shukriya sir, aap yun hi protsahan karte rahiye bas..
hamare liye sab kuch wahi hai

rajiv said...

भले ही आप किसी की फिजिकल हेल्प ना करते हों, भले ही वो शख्स आपके छोटे से प्रयास को रिकग्नाइज करने से चूक जाता हो, लेकिन आपके मन में उसके प्रति कुछ अच्छी भावना-विचार मदद के लिए एक छोटा सा कदम मनवता की बहुत बड़ी सेवा है और जब तक आप जैसे लोग रहेंगे मानवता भी रहेगी. कीप इट अप

Md Shadab said...

rula diya bhai aapki duty honi chaiye thi par aajkal froud itne ho gaye hai ki asli par vishwas hi nahin hota.

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