कभी चिल्लाते थे, कभी गुनगुनाते थे
बचपन के आसमां पर, तारों से झिलमिलाते थे
गिरते थे, उठते थे और झट से मुस्कराते थे
भैया की आंखों से अपने आंसू छिपाते थे
पापा की पॉकेट से पैसे चुराते थे
मम्मी को चुपके से जाकर बताते थे
एक के सिक्के को हफ्तों चलाते थे
खो जाता था तो आंसू बहाते थे
छोटे को सताते थे, भूत से डराते थे
फ़िर, मम्मी की गोदी में ख़ुद सो जाते थे
हर रात परियों से मिलने हम जाते थे
उठकर सुबह बड़े से टब में नहाते थे
बारिश में जब हम कश्ती बनाते थे
मोहल्ले भर में नाव चलाते थे
आज याद आ गया वो बचपन
मास्टर जी के आने से पहले हम जब
रोज सोने का बहाना बनाते थे
आज फ़िर याद आ गया वो बचपन
जब हम जो थे वो ही नज़र आते थे ....
4 comments:
बचपन याद करना भी कितना सुखद होता है...
हां सच है कि बचपन अनमोल होता है ...और इसे बखूबी उकेरा आपने अपनी रचना में
kuch yaadein kabhi nahi bhulti sunder kavita.bachpan mein le gayi.
ur words creates the visual presentation in my mind.....
Very nice piece of writing
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