Sunday, November 1, 2009

को एजूकेशन मिली होती तो....

बात जब भी लड़कियों पे पड़ने वाली निगाह कि होती है तो न जाने क्यों मेरे दिमाग में अपनी ज़िन्दगी के वो बारह साल फिर से गुजरने लगते हैं जो सरस्वती विद्या मंदिर बिताये. खूब संस्कार कि बात कि जाती थी वहां, हमने सीखे भी बहुत से. पर एक सवाल हमेशा सिर उठाने लगता है कि क्या ये सीख पाए कि एक लड़की क्या होती है. उससे कैसे बात कि जाती है...दोस्ती नाम कि भी एक चीज़ होती है. उन संस्कारों का क्या फायदा जब आप यही न जान पाएं कि दुनिया कि सबसे अनमोल चीज़ यानि स्त्री की विवेचना कैसे की जाये. मैं वो दिन कभी नहीं भूल सकता जब पहली बार हमारे टीचर्स ने बताया था की हाई स्कूल में को एजूकेशन होगी. हम ख़ुशी कम मना रहे थे, नर्वस ज्यादा थे. समझ नहीं आ रहा था कि कैसे रिअक्ट करेंगे. खैर, पढाई पूरी करने के बाद दुसरे स्कूल में दाखिला ले लिया, वहां भी को एजूकेशन नहीं थी. ख़ास फर्क नहीं पड़ना था क्यूंकि उन दो सालों में खासा मेहनत करनी थी. फिर लखनऊ विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और सीखा कि लड़कियों से कैसे बात चीत की जाती है. पहले साल तो काफी दबे दबे से रहे. फिर कई बदलाव आये. खैर, विषय से भटक गया. आज भी जब पुराने दोस्तों से बात होती है तो एक बात सब कहते हैं..यार ज़िन्दगी में एक गर्ल फ्रेंड की कमी है बस...कुछ तो ये भी कह देते हैं...बनवा दो. मनो कोई दलाल हूँ. फिर सोचता हूँ कि भला उनकी क्या गलती है. घर वालों से कुछ कह नहीं सकते, मोहल्ले में किसी लड़की से नज़रें मिला नहीं सकते, सो सड़कों पर ही लड़कियों के पीछे घूमकर खुद को खुश कर लेते हैं. ये उनकी मजबूरी भी है और उनके आस पास का माहौल भी. कभी हद तक सोच के इस पिछडे होने कि वजह उनकी वो ग्रूमिंग है. जब तक ऐसा सिस्टम रहेगा, लोग यूँ ही नज़रों का इस्तेमाल करते रहेंगे. और ये हालत खासकर यूपी और बिहार जैसे प्रदेशों में ही है. जहाँ लड़कियों के साथ पढने से लड़के बर्बाद समझे जाते हैं और लड़कियों के साथ भी ऐसा ही है. इसीलिए जैसे ही आजादी मिलती है, लोग मुनेरका के मामले जैसी हरकतें करते हैं,
शायद ज़िन्दगी भर एक नॉन को एजूकेशन स्कूल में बिताने वालों के साथ ये स्थिति ज्यादा आती है. मैं उन दोस्तों से माफ़ी मांगते हुए ये बताना चाहता हूँ की कुछ तो वेश्याओं तक पहुँच चुके हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें एहसास नहीं हुआ की लड़की शारीरिक संतुष्टि के अलावा भी मायने रखती है...

9 comments:

Shakeb Ahmad said...

Problem sirf co-ed se door hone wali nhi hai mere bhai............

Jyoti Verma said...

sab sahi hai par problem sirf humare mind set ki hai. co ed se agar hum girl ko samjhane lage to ye bahut badi baat hai dost. baat yah khatam nahi hoti har koi kisi na kisi girl ke sath zarur rahta hai chahe wo maa ho ,sister ho ya cusine ho teacher ho ....
baat banegi to sirf sanskaroin se, khuli soch se, achchhe nazariye se..

Nikhil Srivastava said...

sehmat hun, but kafi had tak ye bhi ek wajah hai...ye mera manna hai..

Jyoti Verma said...

Nikhil ji
Lagata hai apko bura laga hai meri baat ka.
aap achchha likhate aur sochate hai. bas isi tarah aur nikhar laiye apne lekhan me.

Jyoti Verma said...

ha nikhil ji meri zindagi maa se shuru maa se pe khatm hoti. jante hai humko kasht hai ki maa humse door rahti hai...

Jyoti Verma said...

hi nikhil ji !!!!111
my email id is--
jyoti.ddl@gmail.com

Jyoti Verma said...

hello Nikhil ji !!!
my email id is
jyoti.ddl@gmail.com

Jyoti Verma said...

Nikhil ji visit on my this blog--

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Md Shadab said...

Nikhil bhaiya main kendriya vidhyalaya mein padhta hoon aur maine ye dekha hai ki co ed mein padhne ke baad bhi ladkiyo ke saath kaise treet kiya jata hai nahin jante vo bhi 10 mein aa kar.agar koi ladki unse poochegi ki aaj vikas naam ka ladka nahin aaya to vo hadbadi mein kahenge ki vikas chapter aarthshastra mein hai.baat sirf co ed ki nahin hai baat ladkiyo ko samjhne ki hai.viase bahut achha likha hai aapne mera blog www.mdshadab.blogspot.com bhi dekhe aur comment kar mera utsah badae

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