Monday, August 10, 2009

...तो मुहब्बत नहीं मिलती

दिल में ना हो जुर्रत तो मुहब्बत नहीं मिलती
खैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती

कुछ लोग यूं ही शहर में हम से भी खफा हैं

हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती

देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद
वो कौन है जिस से तेरी सूरत नहीं मिलती
हंसते हुए चेहरों से है बाज़ार की जीनत
रोने को यहाँ वैसे भी फुर्सत नहीं मिलती
-निदा फाजली

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