कभी घर, ऑफिस या कॉलेज में बैठे हुए ये महसूस हुआ कि आपके आस पास कोई नहीं है, सिर्फ वो है जो आपके सपनों में आता\आती है? वो जिसे आप पसंद करते हैं। कभी अकेले चलते चलते उससे बात की है? कभी किताबों में उसकी तस्वीर खुदबखुद उभरी है ? कभी दूसरों के चेहरे में उसका चेहरा नजर आया है? उसकी नामौजूदगी में कभी उसके साथ होने का अहसाह हुआ क्या? एकेले होते हुए भी कभी उसके साथ एक लम्बी वॉक पर निकले क्या? सच कहूँ तो मेरे साथ कभी ऐसा नहीं हुआ? जब उसके बारे में सोचा, तभी वो चेहरा नजर आया। अक्सर लोग कहते हैं कि अगर ऐसा हुआ है तो आप सचमुच प्यार करते हैं, वो भी कहती, लेकिन मैं प्यार तो करता हूँ, था और शायद करता रहूँगा। वो नहीं तो क्या हुआ, वो एहसास नहीं जाएगा जिसे वो प्यार कहती।
प्यार। कितना खास, कितना अजीज़, कितना... कितना अजीब है न। इतने सारे ख्याल। कैसे बांधूंगा इन्हें, समझ नहीं आ रहा। अभी से ही छूटने लगे हैं। अपने मन मुताबिक भाग रहे हैं। दिमाग से दिल तक दौड़ लगा रहे हैं। दिल का ख्याल दिमाग पर जाकर पकड़ में आता है तो वहां उसके मायने बदल चुके होते हैं। जो दिमाग से निकलकर दिल पर ठहरता है, वो भी कुछ और कहने लगता है। अब देखिये प्यार के तथाकथित पर्व के दिन ही उन तमाम भावनाओं को यहाँ सहेजने का मन बनाया था। मन और दिमाग में कहासुनी होती रही और हम आज जाकर यहाँ रुक सके। मन था कि एक बहुत ही सामान्य से असामान्य सवाल को कुरेदेंगे। एकदम बेसिक। आखिर प्यार क्या है? जो मैं करता हूँ? वो प्यार है? वो टीवी वाला, वो अख़बार वाला, वो रेडियो वाला प्यार है तो मेरा प्यार क्या है? ये फर्क कैसा और क्यों है? उसके लिए एक पल बहुत ही आक्रामक होने वाली भावना भी क्या प्यार है? एक पल बहुत नाजुक सी महसूस होने वाली वो भावना की महीन डोर भी प्यार की है? प्यार एक सा क्यूँ नहीं है? जानवर के लिए अलग प्यार की परिभाषा, माँ और पिता जी के लिए अलग, दादा-दादी के लिए अलग, भाई-बहन के लिए अलग, दोस्त के लिए अलग। आखिर क्यूँ?
जानता हूँ बेहद बेतुका और दार्शनिक सा सवाल है। लेकिन, क्या करें? सवाल उठता है तो कैसे दबा दें। दर्द तो अपने सीने में हो होगा न। ये भी जानता हूँ इस प्यार का कोई सिरा नहीं है। जहाँ से शुरू किया था वापस वहीँ लौट के जाऊंगा या फिर बीच राह में ही रुककर शोक मनाऊंगा। लेकिन कब तक। समय सबसे बड़ा मरहम है जैसी बातें सुनाई जाएंगी। एक पल को मान जाऊंगा और फिर कुछ दिन उस प्यार की कमी महसूस करूँगा।
ये प्यार शब्द आखिर है क्यूँ? मैं इस खांचे में अपनी भावनाओं को नहीं फिट कर पाया। न कर पाउँगा। लगता है, कि ये उस भावना, उस अहसास को बांध देता है। एक मानक बना देता है। ये प्यार है, वो नहीं है। आखिर ये शब्द कौन होता है ये बताने वाला कि क्या प्यार है क्या नहीं।
कुछ तोहफे, कुछ स्पर्श, कुछ सांसें, कुछ बातें... यही है 'लव' आज कल?
(कृपया सहानुभूति मत जाताइएगा।)
प्यार। कितना खास, कितना अजीज़, कितना... कितना अजीब है न। इतने सारे ख्याल। कैसे बांधूंगा इन्हें, समझ नहीं आ रहा। अभी से ही छूटने लगे हैं। अपने मन मुताबिक भाग रहे हैं। दिमाग से दिल तक दौड़ लगा रहे हैं। दिल का ख्याल दिमाग पर जाकर पकड़ में आता है तो वहां उसके मायने बदल चुके होते हैं। जो दिमाग से निकलकर दिल पर ठहरता है, वो भी कुछ और कहने लगता है। अब देखिये प्यार के तथाकथित पर्व के दिन ही उन तमाम भावनाओं को यहाँ सहेजने का मन बनाया था। मन और दिमाग में कहासुनी होती रही और हम आज जाकर यहाँ रुक सके। मन था कि एक बहुत ही सामान्य से असामान्य सवाल को कुरेदेंगे। एकदम बेसिक। आखिर प्यार क्या है? जो मैं करता हूँ? वो प्यार है? वो टीवी वाला, वो अख़बार वाला, वो रेडियो वाला प्यार है तो मेरा प्यार क्या है? ये फर्क कैसा और क्यों है? उसके लिए एक पल बहुत ही आक्रामक होने वाली भावना भी क्या प्यार है? एक पल बहुत नाजुक सी महसूस होने वाली वो भावना की महीन डोर भी प्यार की है? प्यार एक सा क्यूँ नहीं है? जानवर के लिए अलग प्यार की परिभाषा, माँ और पिता जी के लिए अलग, दादा-दादी के लिए अलग, भाई-बहन के लिए अलग, दोस्त के लिए अलग। आखिर क्यूँ?
जानता हूँ बेहद बेतुका और दार्शनिक सा सवाल है। लेकिन, क्या करें? सवाल उठता है तो कैसे दबा दें। दर्द तो अपने सीने में हो होगा न। ये भी जानता हूँ इस प्यार का कोई सिरा नहीं है। जहाँ से शुरू किया था वापस वहीँ लौट के जाऊंगा या फिर बीच राह में ही रुककर शोक मनाऊंगा। लेकिन कब तक। समय सबसे बड़ा मरहम है जैसी बातें सुनाई जाएंगी। एक पल को मान जाऊंगा और फिर कुछ दिन उस प्यार की कमी महसूस करूँगा।
ये प्यार शब्द आखिर है क्यूँ? मैं इस खांचे में अपनी भावनाओं को नहीं फिट कर पाया। न कर पाउँगा। लगता है, कि ये उस भावना, उस अहसास को बांध देता है। एक मानक बना देता है। ये प्यार है, वो नहीं है। आखिर ये शब्द कौन होता है ये बताने वाला कि क्या प्यार है क्या नहीं।
कुछ तोहफे, कुछ स्पर्श, कुछ सांसें, कुछ बातें... यही है 'लव' आज कल?
(कृपया सहानुभूति मत जाताइएगा।)
6 comments:
प्रेमरोग का वो गाना याद आ गया... कुछ न बोला कुछ न बोला बस यही कहता रहा/ मोहब्बत है क्या चीज हमको बता दो...
very romantic
बताओ प्यार में भी दिमाग उड़ेल दिया
जी भर के पोस्ट में दिमाग ने प्यार के शब्द में गोते लगाए
पोस्ट खत्म हुई, बाहर निकल आए
क्यों कितना दिमाग है तुम्हारे पास
Nikhil ki 'Vo' yaani party. khayalon me ho ya phone per vo jab aati hai to mujhe bhi pata chal jata hai
Youngman, Heart is an animal and can you believe an animal being a rational head?
Caveman's caveat## Love hundred to thousand times but never give your heart to one.
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