बड़ा मुंह बड़ा काम का होता है। जरा सी आवाज़ आ जाये तो दुनिया पलक पांवड़े बिछा देती है। छोटे से मुंह की क्या बिसात। वैसे भी आजकल लोग उगे हुए सूरज को ही सलाम ठोकते हैं। बेशर्म...
ये कहना पता नहीं सही है या नहीं पर मन में आया है तो रुकुंगा नहीं। दरअसल एक सोशल नेटवर्किंग साईट पर एक उगे हुए सूरज ने कुछ फ़रमाया। इत्तेफाक से ठीक वही बात एक छोटे से तारे ने कुछ दिन पहले फरमाई थी। तारे की उस बात पर चुनिन्दा लोगों ने गौर फ़रमाया। खैर वो बात आई और गई। आज ठीक उसी बात पर जब सैकड़ों लोगों को ज्ञान बघारते देखा तो लगा की ये दुनिया नहीं सुधरने वाली। जो लोग चापलूसी को घटिया बताया करते हैं, वही जीभ लटकाए लपर चपर कर रहे थे। सच कहूँ तो लगातार मन में अजीब सी टीस हो रही है। ऐसा नहीं है कि उस छोटे से तारे के दोस्तों में वही ज्ञान बघारने वाले लोग नहीं थे। ज्यादातर नहीं तो कुछ तो वही थे। सवाल उठता है कि इसमें नया क्या है। तो मैं कोई प्रोडक्ट नहीं बेच रहा कि नया और पुराना देखूं। न ही ये कोई खबर है कि मैं डेस्क पर बैठकर इसका कोई नया एंगल बताऊँ। ऐसा होते हुए देखा है, पहले लगता था कि शायद लोग जानते न हों। फिर मन में आया कि हो सकता है उनकी शान के खिलाफ हो तारों को प्रोत्साहित करना। अब लगता है कि ये तो फितरत है लोगों की। ज्यादातर लोग कहीं ज्ञान देते हैं और पलट कर किसी न किसी की शान में कसीदे पढ़ने लगते हैं। हम खुद को ही नहीं सुधर पा रहे हैं, दुनिया क्या ख़ाक सुधारेंगे। लपर चपर और बातों की बाजीगरी करके जो खुद को युग प्रवर्तक समझते हैं तो वे शर्म करें। ऐसे नहीं आएगा बदलाव। शुरुआत 'मैं' से करनी पड़ेगी। पड़ेगी क्या करनी है। कौन क्या दे देगा, किसे क्या कहने से क्या फायदा होगा, सोचेंगे तो गर्त में जायेंगे। न यकीन हो तो देखिये फेसबुक, ट्वीटर और ऐसी ही साइट्स। ऐसा नहीं है की कुछ चुनिन्दा लोगों से अच्छे विचार किसी के नहीं है। फर्क उगे हुए और उग रहे का है। सूरज और तारे का है। बड़े और छोटे का है और युवा और अनुभव वाले का है। इस तरह की बातों पर अक्सर सुनता हूँ कि, अभी पैदा हुए हैं और चाहत है उड़ने की। ऐसी बातें जब तक होती रहेंगी, बदलाव नहीं होगा। ज्ञान बघारने से कुछ नहीं होगा। ब्लॉग्स पर कमेन्ट गिरते रहेंगे और साइबर कचरा जमा होता रहेगा। वहां भी टीआरपी देख कर खुश हो लेंगे लोग। कुछ लोगों को कोई अवार्ड मिल जाएगा. हो सकता है किसी पद्म अवार्ड भी मिल जाये. आज कल तो ये भी बतकही में बिक रहा है....और देश वहीँ का वहीँ रह जाएगा।
फिर भी मुझे उन तारों से उम्मीद है कि वो हताश नहीं होंगे, जगमगाते रहेंगे। एक दिन वो भी मुकाम पाएंगे और कुछ लोग उनके भी आस पास मंडराएंगे। लेकिन वो कभी वैसे नहीं बनेंगे।
आमीन।
(भूल चूक माफ़। मैं किसी कि भावनाओं को आहात नहीं करना चाहता। ये मेरी सोच और मेरा ही ऑब्जरवेशन है।)
5 comments:
एक कहावत है जहा देखे हन्दा परात वहा गाये सारी रात. मै सूरज नही लेकिन तारो की चमक मुझे आकर्शित करती है
धन्यवाद् सर, पर सच यह भी है कि आप जैसे कम हैं.
ज्ञान बघारने से कुछ नहीं होगा। ब्लॉग्स पर कमेन्ट गिरते रहेंगे और साइबर कचरा जमा होता रहेगा। वहां भी टीआरपी देख कर खुश हो लेंगे लोग। कुछ लोगों को कोई अवार्ड मिल जाएगा. हो सकता है किसी पद्म अवार्ड भी मिल जाये. आज कल तो ये भी बतकही में बिक रहा है....और देश वहीँ का वहीँ रह जाएगा।
sahi kaha apne nikhil ji!
sab log ek ratrace me daud rahe hai....hum aap bhi...
आपकी खुन्नस पढ़ी, अच्छा लगा. एक सजेशन है, मानो या न मानो, यार दुनिया की चिंता क्यों करते हो. अगर खुद को तारा मानते हो, तो तारा तो सूरज भी है. अंतर सिर्फ ये है कि उगा हुआ सूरज तुम्हारी तुलना में दुनिया के थोड़ा ज्यादा करीब है. वो जब उगता है तो उसकी रोशनी में दुनिया को दूसरे तारे दिखते ही नहीं. वैसे उसी सूरज ने न जाने कितने फासले गुमनामी में तय किए होंगे, आज उसकी चमक धरती पर पड़ रही है इसीलिए दुनिया उसे सलाम कर रही है, लिखते रहो, और बढिय़ा लिखते रहो. जिस दिन तुम्हारी लेखनी की तपिश से धरती गर्म होगी, यकीन मानो दुनिया तुम्हारे ही पीछे होगी. वैसे भी तुम लिखते हो अपने लिए दुनिया की क्या फिक्र. क्यों है न?
सही कहा सर, बात तो सही है आपकी.
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