सुभाष आज भी एक पहेली हैं, कम से कम मेरे लिए. मेरे लिए वो कभी नहीं मरे. वो हमेशा मेरे पास हैं. आज भी उनसे एकांत में बातें करता हूँ. मैं खुद में उन्हें बसाना चाहता हूँ. उनसा कुछ करना है. उनसा बनना है. देश को एक खूबसूरत सुबह से रू ब रू कराना है.
आमीन!
1 comment:
आमीन!
अच्छा आलेख!
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