Friday, January 22, 2010

किस खबर को कितना सनसनीखेज बनाना चाहिए

हाल ही में खबर चली कि ४४ डीम्डविश्वविद्यालयों किमान्यता रद होगई...बच्चे परेशां होगए..रात में बजे एकबच्चे का फ़ोन आयाकि पूरे कॉलेज में टेंशनहै. बच्चे तोड़ फोड़ कररहे हैं और कुछ बच्चेबहुत रो रहे हैं, मैंनेउन्हें समझाया किआपको घबराने कीजरुरत नहीं है...मामला अभी सुप्रीमकोर्ट के पास है और वैसे भी आपकाभविष्य सेफ है, लेकिन ज्यादातरमीडिया में खबर ऐसे आई मनो बच्चोंका भविष्य तो गया, अगर ऐसे मेंकोई युवक आत्महत्या कर लेता तोएक दिन की खबर का जुगाड़ होजाता. फिर वो भी एक दिन का प्रिंसबन जाता. अरे जब इन विश्वविद्यालयोंको डिग्री बांटी जाती हैं तो कहाँ रहते हैंसब...ये धंधा आज का नहीं है. किसखबर को कितना सनसनीखेज बनानाचाहिए, इस पर मीडिया जगत मेंमंथन की जरुरत है.
एक बार भी नहीं सोचा गया कि बच्चोंके एक्साम चल रहे होंगे. टेंशन पहलेही काफी रही होगी. ऐसे में कोई गलतकदम उठता तो स्वाभाविक था, हालाँकि ऐसा कुछ नहीं हुआ. लेकिनअनजाने में ही सही, कोशिश पूरी हुई.
बदलाव का समर्थन करना सर्वथा सहीहै पर उसके प्रभाव को ध्यान में रखतेहुए...कुछ लोगों का तर्क हो सकता हैकि ऐसे तो हम यही सोचते रह जायेंगेकि किस बात से किस पे कितनाप्रभाव पद रहा है, और कुछ भी नहीं होपाएगा. वो ये भी कहेंगे कि बदलाव मेंकिसी किसी को तो सहना ही पड़ताहै. पर, मेरा सवाल है कि आखिर वेकैसे लोग हैं जिन्हें मंत्रालय की प्रेसरिलीज़ से खबर पता चलती है. या तबपता चलती है जब कोई एक्शन प्लानतैयार हो रहा होता है. धंधे कापर्दाफाश हो, तब बात है. कुछ लोग येभी कह सकते हैं कि युवाओं कोमजबूत होना चाहिए पर हमारा वशनहीं चलता उनके दिमाग पर, ये बातभी हमें ध्यान रखनी चाहिए क्यूंकिइस परिस्थिति में हम ज्यादासमझदार हैं और बच्चे गलत करेंइसके लिए हमें सोचना चाहिए. यूँ हीलोग नहीं कहते कि मीडिया चीज़ों कोस्टार्ट तो करती है पर अधूरा छोड़ देतीहै. इस बात के भी कई तर्क हो सकतेहैं पर इसमें सच्चाई भी है.
मैं खुद इस पहल का प्रशंशक हूँ. अच्छा लगा कि किसी ने शुरुआत की. सिस्टम सही करने के लिए तरीका येही सही. पर गिरेबान उनका पकड़ना हैजो इस धंधे के केंद्र में हैं. मंत्री कोकोसने से कुछ नहीं होगा. अगर वेजिम्मेदार हैं तो उन्हें भी कटघरे मेंखड़ा कीजिए. सिस्टम को सवालों सेघेरिये. मैं भी पूरी कोशिश करूँगा. अपने स्तर से, अपनी पूरी क्षमता से. पर, इस मुद्दे को यूँ ही मत भूलिए. इसेमुहिम बनाइये और अंजाम तकपहुंचिए. हालाँकि अब कई लोग अपनीपीठ आगे बढ़ा रहे होंगे इस उम्मीद मेंकि उनकी पीठ थपथपाई जाये.

2 comments:

Udan Tashtari said...

जो भी हो जिम्मेदारी से सभी पक्षों को ध्यान में रखकर काम करना चाहिये.

Arvind Mishra said...

सहमत ,मीडिया के कुछ तत्व दिन ब दिन गैर जिम्मेदार और असहिष्णु हो रहे हैं

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