गूगल से साभार |
क्यूँ हैं
ये मायूस सी गली
गुमसुम सा चाँद
हांफती सड़क पे रेंगते निशान...
क्यूँ है
ये तड़पती सी हवा
अनजान सी सिरहन
कोसते सफ़र पे बेजुबान धडकन...
क्यूँ हैं...
ये चीखते से जश्न
दरकते से तख़्त
सूखती नसों पे सिरफिरा वक़्त...
क्यूँ हैं,
ये उजड़ता सा लम्हा
खटकता सा अश्क
हमारी चाहतों पे लिपटता रश्क...
क्यूँ हैं,
ये उदास सा मौसम
बदहवास सा दर्द
चटखती ज़िन्दगी पे ये आहें सर्द....
3 comments:
sundar!
Very good. Simple words woven in intense sentences
बहुत मुखर और प्रखर से प्रश्न ......
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