Friday, September 28, 2012

कि कोई दूसरा जहाँ भी होगा...

फोटो गूगल से साभार 

न मिली 
नींद भर जमीं, धूप भर 
आसमां न मिला 
खामोश रहे वो शायद  
कि कोई दूसरा जहाँ भी होगा....

न किये 
तकादे खुदा से, किस्मत से 
हिसाब न माँगा 
गम पी गए वो शायद
कि कोई दूसरा जहाँ भी होगा... 

न मांगी
सुबह खुशियों की, रातों से 
आस न मांगी 
पड़े रहे किनारों पे शायद 
कि कोई दूसरा जहाँ भी होगा

न देखे 
ख्वाब सोने के, तश्तरी 
चांदी की न चाही
पिघलते रहे वो भट्टों में शायद
कि कोई दूसरा जहाँ भी होगा 

जलते रहे 
ज़िन्दगी भर, तपिश से 
दूर न भागे, मौत भी 
आ गई लेकिन, खुदा से राख न मांगी 
शायद उन मजदूरों के लिए 
कोई दूसरा जहाँ भी होगा ....

2 comments:

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बहुत अच्छा लिखा है ,अक्सर ज़िन्दगी इस दूसरे जहाँ की उम्मीद में ही बीत जाती है ......

रश्मि प्रभा... said...

waah...bahut achhi rachna

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