फोटो गूगल से साभार |
न मिली
नींद भर जमीं, धूप भर
आसमां न मिला
खामोश रहे वो शायद
कि कोई दूसरा जहाँ भी होगा....
न किये
तकादे खुदा से, किस्मत से
हिसाब न माँगा
गम पी गए वो शायद
कि कोई दूसरा जहाँ भी होगा...
न मांगी
सुबह खुशियों की, रातों से
आस न मांगी
पड़े रहे किनारों पे शायद
कि कोई दूसरा जहाँ भी होगा
न देखे
ख्वाब सोने के, तश्तरी
चांदी की न चाही
पिघलते रहे वो भट्टों में शायद
कि कोई दूसरा जहाँ भी होगा
जलते रहे
ज़िन्दगी भर, तपिश से
दूर न भागे, मौत भी
आ गई लेकिन, खुदा से राख न मांगी
शायद उन मजदूरों के लिए
कोई दूसरा जहाँ भी होगा ....
2 comments:
बहुत अच्छा लिखा है ,अक्सर ज़िन्दगी इस दूसरे जहाँ की उम्मीद में ही बीत जाती है ......
waah...bahut achhi rachna
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