Friday, July 22, 2011

तमन्ना...


ऐ मुसाफिर...
क्यूँ जारी है ख़ुशी की तलाश
कितनी मायूस है तेरे सपनों की रात

ऐ मुसाफिर, पन्ने तो पलट
देख वो स्याही भी सूख गई
ढलती रही जिसमें ज़िन्दगी तेरी

तेरी इक कोशिश से बन जायेंगे
खुदबखुद असबाग
तो क्यूँ न तू नयी कहानी लिख

मैं मजबूर हूँ...मौसम की तरह
मुझपर मेरा ही बस नहीं
तेरे अरमानों ने ही ज़िंदा रखा है मुझे

मत खोज...
उसका कोई अक्स औ लिबास नहीं
उसे खोजने में तू हर ख़ुशी खो देगा,

मैं एक रोज़, तुमसे मिलने आऊँगी
मुसाफिर लेकिन इंतजार न कर
वादा रहा, तेरे हर गम का हिसाब कर जाऊँगी

मत सोच कि मैं तेरे आंसू नहीं गिनती
मैं तेरी तमन्ना हूँ, यकीं तो कर
तुझे रुलाकर मैं कैसे जी पाऊँगी...

1 comment:

xitija said...

sabd nahi hain nikhil ji .... its just awesome ...

Related Posts with Thumbnails