काश...
मैं भी होता तुझ सा
आवारा, ऐ हवा...
फिरता कहीं भी
मनमाना ऐ हवा
बेसुध, बेपरवाह
अल्हड़, दीवाना ऐ हवा
ठहरकर, आंसुओं को
न गिनता ऐ हवा
बांटकर सुकूं
इठलाता ऐ हवा
पंछियों से आगे
बढ़ता रहता ऐ हवा
काश, मैं तुझ सा
होता ऐ हवा
रवायतों के पन्नों को ले
उड़ जाता ऐ हवा
आंसुओं को पल में
सुखा पाता ऐ हवा
दीवाना होता, मैं भी
सरगोशियाँ करता ऐ हवा
बहारों को फूलों से
सजाता ऐ हवा
मोहब्बत के दामन को
उड़ाता रहता ऐ हवा
बच्चों के अरमानों सा
उड़ता ऐ हवा
काश...काश....काश
मैं तुझ सा होता ऐ हवा...
1 comment:
too good ....................:)
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