आवारा कहूँ या बेकरार तुझको
किसकी तलाश है जो दर दर भटकती है
ठहरती है कहीं न सांस लेती है
बांटती है जिंदगी, खुद खामोश रहती है
किसी के पहलू, किसी के दामन में
जाने तू कैसे रंगों-सांचों में ढलती है
आशियाना, ठिकाना, तेरा घर कहाँ है
पेड़ों, मुंडेरों पर तो बस तू ठहरती है
ग़मों की तेरी लम्बी कहानी है
बरफ के पहलू में तू भी आंसू बहाती है
लेकिन, फितरत तेरी तो मुझ सी ही है
गुस्से में तू भी श्रृष्टि से लड़ती है
ऐ हवा, ठीक मेरे दिल की तरह
तू भी बेताब, हैरान सी फिरती है
ऐ हवा...तू मुझमें मैं तुझमें हूँ
मेरे अरमानों की तरह तू भी दिखती नहीं
ऐ हवा, कुछ तो है हमारे दरमयां
यूँ ही नहीं दिन रात मेरे संग तू चलती है....
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