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खो गया था दुनिया के झंझावातों में आइना देखता हूँ, पर खुद की तलाश है, मुसाफिर हूँ. ये अनकही खुली किताब है मेरी... हर पल नया सीखने की चाहत में मुसाफिर हूँ.. जिंदगी का रहस्य जानकर कुछ कहने की खातिर अनंत राह पर चला मैं मुसाफिर हूँ... राह में जो कुछ मिला उसे समेटता मुसाफिर हूँ... ग़मों को सहेजता, खुशियों को बांटता आवारा, अल्हड़, दीवाना, पागल सा मुसाफिर हूँ... खुशियों को अपना बनाने को बेक़रार इक मुसाफिर हूँ... उस ईश्वर, अल्लाह, मसीहा को खोजता मैं मुसाफिर हूँ...
Tuesday, October 20, 2009
वो अजीब एहसास
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Thursday, October 8, 2009
फ़िर याद आ गया वो बचपन
कभी चिल्लाते थे, कभी गुनगुनाते थे
बचपन के आसमां पर, तारों से झिलमिलाते थे
गिरते थे, उठते थे और झट से मुस्कराते थे
भैया की आंखों से अपने आंसू छिपाते थे
पापा की पॉकेट से पैसे चुराते थे
मम्मी को चुपके से जाकर बताते थे
एक के सिक्के को हफ्तों चलाते थे
खो जाता था तो आंसू बहाते थे
छोटे को सताते थे, भूत से डराते थे
फ़िर, मम्मी की गोदी में ख़ुद सो जाते थे
हर रात परियों से मिलने हम जाते थे
उठकर सुबह बड़े से टब में नहाते थे
बारिश में जब हम कश्ती बनाते थे
मोहल्ले भर में नाव चलाते थे
आज याद आ गया वो बचपन
मास्टर जी के आने से पहले हम जब
रोज सोने का बहाना बनाते थे
आज फ़िर याद आ गया वो बचपन
जब हम जो थे वो ही नज़र आते थे ....
बचपन के आसमां पर, तारों से झिलमिलाते थे
गिरते थे, उठते थे और झट से मुस्कराते थे
भैया की आंखों से अपने आंसू छिपाते थे
पापा की पॉकेट से पैसे चुराते थे
मम्मी को चुपके से जाकर बताते थे
एक के सिक्के को हफ्तों चलाते थे
खो जाता था तो आंसू बहाते थे
छोटे को सताते थे, भूत से डराते थे
फ़िर, मम्मी की गोदी में ख़ुद सो जाते थे
हर रात परियों से मिलने हम जाते थे
उठकर सुबह बड़े से टब में नहाते थे
बारिश में जब हम कश्ती बनाते थे
मोहल्ले भर में नाव चलाते थे
आज याद आ गया वो बचपन
मास्टर जी के आने से पहले हम जब
रोज सोने का बहाना बनाते थे
आज फ़िर याद आ गया वो बचपन
जब हम जो थे वो ही नज़र आते थे ....
Friday, October 2, 2009
मजबूरी का नाम गाँधी
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दरअसल कोई गाँधी को जानना नहीं चाहता, बस उन्हें गरिया कर सबका मन भर जाता है। सब सुनी सुने बातों पर यकीं कर लेते हैं। कभी ये सोचने की कोशिश नहीं की जाती कि आख़िर कब तक हम यूँ ही सिर्फ़ कही सुनी बातों को अपनी अगली पीढी को देते रहेंगे। हमारे पास एक अच्छा मौका था, हमने गवां दिया। खैर, गाँधी जयंती पर असल गाँधी को जान लिया जाए, इससे बड़ी बात और कुछ नहीं हो सकती। फ़िर वो कोई भी हो, बापू भी खुश हो जायेंगे। उसकी आत्मा को शान्ति मिल जाएगी।
मैं गाँधी भक्त नहीं हूँ। लेकिन मैंने भी उनको अपने बचपने में काफी गरियाया है। जब सोचा कि क्यूँ गरियाता हूँ तो उनके बारे में पढ़ा है। अलग अलग मतों को पढ़ा है, और काफी हद तक उनको समझा है।
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