लम्हे पकड़ते, कुछ तुमसे कहते
पहले ही तुमने हमें भुला दिया
आखिर हमनें ऐसा क्या किया
ज़िन्दगी साथ बुनते, वक़्त की धुनें सुनते
पहले ही तुमने मुंह मोड़ लिया
आखिर हमने ऐसा क्या किया
बागबां बनाते, सपने सजाते
पहले ही तुमने ना कह दिया
आखिर हमने ऐसा क्या किया
कितने रतजगे, कितने फलसफे
पल भर में तुमने सबको भुला दिया
आखिर हमने ऐसा क्या किया
कितनी कशिश, कितने रंजोगम
फिर से तुमने यूँ सहला दिया
आखिर हमने ऐसा क्या किया...
-----------------निखिल श्रीवास्तव
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