खो गया था दुनिया के झंझावातों में आइना देखता हूँ, पर खुद की तलाश है, मुसाफिर हूँ. ये अनकही खुली किताब है मेरी... हर पल नया सीखने की चाहत में मुसाफिर हूँ.. जिंदगी का रहस्य जानकर कुछ कहने की खातिर अनंत राह पर चला मैं मुसाफिर हूँ... राह में जो कुछ मिला उसे समेटता मुसाफिर हूँ... ग़मों को सहेजता, खुशियों को बांटता आवारा, अल्हड़, दीवाना, पागल सा मुसाफिर हूँ... खुशियों को अपना बनाने को बेक़रार इक मुसाफिर हूँ... उस ईश्वर, अल्लाह, मसीहा को खोजता मैं मुसाफिर हूँ...
Saturday, June 26, 2010
अगले जनम मोहे दिल न दीजो...(ऑनर किलिंग, एक जाहिल सोच और हम )
न जाने कब से दिखावे के लिए खून बहाया जा रहा है। उसे विभिन्न तर्कों के माध्यम से सही भी ठहराया जा रहा है। बीते कुछ वर्षों में इसे अच्छा सा मॉडर्न नाम भी मिल गया है। ऑनर किलिंग। लगता है कोई गौरवान्वित करने वाला मिशन है, शायद यही वजह है कि मंदीप, अंकित और नकुल जैसे युवा बड़ी शान से अपनी बहन और उसके पति का खून बहा देते हैं। एक पूरा समाज इसे सही ठहराता है। इस समाज के युवा वर्ग के चेहरे पर तेज को देखकर लगता है ये बहुत खुश हैं। कल ये भी कुछ ऐसा करने में गर्व महसूस करेंगे। इनके परिवार या समाज की किसी लड़की ने प्रेम किया तो ये उसे भी मोनिका और शोभा की तरह मार देंगे।
फिर...उसके बाद क्या? क्या वो पर्व मनाएंगे? उत्सव मनाएंगे? क्या करेंगे वो? क्या करेगा वो समाज? क्या प्रेम होने से रोक लेगा? क्या दिल को धड़कने से रोक लेगा? क्या भावनाओं में कोई परिवर्तन कर पाएगा? क्या माओं को बिटिया जनने से रोक लेगा? क्या अपनी बहन-बेटी की आँखें किसी दूसरी जात वाले से मिलने से रोक लेगा? क्या ये मुमकिन होगा? नहीं तो खून बहाता रहेगा ये समाज. माएं सहमेंगी और दुआ करेंगी कि अगले जमन वो बिटिया न जनें. लेकिन उस पर उनका बस कहाँ. वो इतना तो जरुर कहेंगी कि कम से कम अगले जनम मोहे दिल न दीजो.
ये निराशावादी है लेकिन क्या करूँ? मेरे शब्दों में इतनी ताकत नहीं कि ये इस समाज को बदल सकें. फिर, हमारे जैसे बहुत से लोग ही जब इस समाज के रीत रिवाजों का समर्थन कर रहें हैं तो ये काम और भी असंभव लगता है. आये दिन बहस छिड़ती है और होते होते वो पुरुष बनाम स्त्री हो जाती है. कुछ महाशय उन रूढ़िवादियों का समर्थन करते हैं जिन्हें अपनी कथित इज्जत से इतना लगाव् है कि वो उसके लिए अपनी बच्ची की जान भी ले सकते हैं. यहाँ मेरा मन मुझसे एक सवाल पूछता है कि वो पिता अपनी हवस कि उपज को maarta है या अपनी बेटी को? जवाब हत्या खुद बी खुद बता देती है. एक न्यूज़ चैनल पर कल इसी मुद्दे पर बहस छिड़ी थी. कुछ महिलाएं ऑनर किलिंग का विरोध कर रही थी, एक पुरुषवादी और इज्जतवादी ने जवाब दिया कि अगर सोच महज दिखावा होती है तो कपड़े उतार कर घूमिये. और न जाने कैसे अनाप शनाप तर्क दिए. ये सोच कहाँ से पनपती है, ये तो मैं नहीं जानता लेकिन इतना जरुर कह सकता हूँ कि ये सोच देश को गर्त में ही ले जाएगी.
हम सब को ये सच मान लेना चाहिए कि प्यार जात और गोत्र देखकर नहीं किया जा सकता. न ही ये रंग देखता है. ये जिस्म भी नहीं देखता. जिन क्षेत्रों में ये घटनाएँ हो रही हैं, उनका हाल किसी से छिपा नहीं है. वो पैसे वाले हो सकते हैं, लेकिन उनकी शिक्षा का स्तर जगजाहिर है. इसलिए हमें ऐसी सोच को तूल नहीं देना चाहिए. इसी में हमारे भविष्य की भलाई है. बल्कि हम सबको अपने अपने तरीके से इन लोगों का विरोध करनाहोगा ताकि ये इस जाहिल सोच को आगे न ले जा पाएं।
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7 comments:
Nikhil, isase behoodi soch aur kya ho sakti hai ki log killing ko honour kahte hain. Kabeer Das ne kaha tha Dhai Akhar Prem ka padhe so Pandit hoi...lekin ab lagata hai Dhai akhar prem ka padhe so Dandit hoi..
heading attractive lagi..bus!!!
nikhil achha likha hai...lekin jab ghar ki ijjat (bahan, beti, maa ya aur koyi)koi galat kadam uthaye aur samjhane par bhi naa maane to is taish mein is tarah ki ghatnaye hoti hain
nikhil achha likha hai...lekin jab ghar ki ijjat (bahan, beti, maa ya aur koyi)koi galat kadam uthaye aur samjhane par bhi naa maane to is taish mein is tarah ki ghatnaye hoti hain
WITH due res. amit ji mai jara apki bat se sahamt nahi hoon.samman ke nam par kisi ko mar dena kaha tak jaj hai.pyar karna koe galat kadam uthana nahi hai. galat to use bolege ki ap pyar kisi aur se kare aur shadi kisi aur se. es tarah to ap char-char jindgiya brbad karte hai.aj co-education ka jamana hai. ladke-ladkiya sath-sath padte aur kam karte hai to attracton ya pyar hona koe badi bat nahi hai.ek pyar ke nam pr apne baccho se pyar ko bhula dena kahan tak jayaj hai.
jab tak samaj ki yahi soch nai badlegi ham yu hi pichde bne rahege. kisi ki jan le lena kisi smasya ka halnahi hai.es jhoothi ejjat ka gana bhoolkar hame desh ki anya samasyao par dhyan dena chahiye.
AUR BHE GUM HAI ES JAMANE ME EJJAT KE SIVA.
NIKHIL JI EK ACHE VICHAR KO UTHANE KE LIYE DHANYAVAAD.
shikha shukla
http://baatbatasha.blogspot.com
hello sir aapne ek mudde ko uthanya toh shi per shayad vo abhi kuch shabad au chahta tha aapse kyoki aapke article ne mind ko halka sa current diya per bat dil tak nhi pauchi jo pahucna jaruri he is mamle me..per fir bhi aapne is vishaye ko liya ye aapka prayash bhi kam mehtavpuran nhi he thank u
me apko blog reader amit se kehna chahaugi ki koi bhi ladki sirf apki ma behan ya beti nhi hoti vo ek insaan bhi hoti he jisme jasbaat hote he bhavnaye hoti he jise respect milni hi chahiye........gusse me aaker bhi aapko ye haq nhi milta ki aap kisi ka murder kro ya maarpit kro kyoki aisa ager sab krne lag jaye toh hum insaan se jaanvaro ki koti me aa jayege
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