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काफी दिनों से एक कोशिश कर रहा था। एक नेक काम करने की। देश के लिए कुछ करने की ठानी थी। सोचा था ये शुरुआत बदलाव लाएगी। देश की सोच बदलेगी और न जाने क्या क्या। बस एक हफ्ते पहले की बात है। ऑफिस में यूँ ही कुछ बात चली। एक विचार आया। वोटर अवारेनेस कम्पैन का। गांव में काम किया ही हुआ था तो सोचा शहर में भी कर ले जायेंगे और रिजल्ट अच्छे होंगे। पर हमने सोचा कि हम सिर्फ़ युवाओं को ही जागरूक करने का काम करेंगे। बस उसी शाम बात की और अपने एक साथी के साथ जी जान से लग गए इस काम में । अगले दिन बैठे और रात ३ बजे तक प्रोपोसल बनाया की कुछ स्पांसर मिल जायेंगे। देश के लिए तो बहुत लोग आगे आयेंगे ऐसा सोचकर अगली सुबह से लोगों को फ़ोन लगना शुरू कर दिया, एक नामचीन हस्ती से भी बात कर ली ताकि युवा जमा हो जायें और हमारा संदेश सब तक पहुँच जाए। बातें चल रही थी, पहली शाम तक लगा सब कुछ धमाकेदार अंदाज़ में होगा। फ़िर कुछ और लोगों से बात करने की हिम्मत मिली, दौड़ भाग की, लोगों के दफ्तर गए, मिले, अपना प्लान समझाया, कईयों को फ़ोन कर करके खूब समझाया..सबने तारीफ की....
.... पता नहीं खुदा को क्या मंजूर था , और हमारा इवेंट नही हो सका, मन टूट सा गया। लगा जाने क्या कमी रह गई। सारी मेहनत बेजान सी लगने लगी। फ़िर पिछले ७ दिनों में आए बदलाव पर गौर फ़रमाया, लगा अभी तो शुरुआत है, बहुत लंबा सफर तय करना है। फ़िर ऐसी चोटें ही तो मजबूती देंगी। लगता है कि सब कुछ मुमकिन है ज़िंदगी की
इस किताब में। इसकी कहानी हम ख़ुद लखते हैं। अच्छे शब्द वाक्यों में तब्दील होंगे और किताब में जान आ जाएगी। लेकिन इस कोशिश (जो साकार थी पर परिणाम नही मिले) कई कोशिशों के लिए प्रेरित करेगी।
और एक दिन मैं इस देश कि तस्वीर बदलूंगा।