Saturday, September 20, 2008

जाने क्यों? मेरी अनकही पार्ट-1


आप किसी न किसी के लिए अपनी खुशियाँ दरकिनार करते होंगे। किसके लिए? क्या उस खास के लिए आपकी खुशियाँ की कोई कीमत है? मुझे तो लगता है कि जिनके लिए आप अपनी खुशियों का गला घोंटते हैं, वे उसे कुछ और कहते हैं.... अहसान। अगर आप किसी बड़े को खुशी देने की कोशिश करिए तो आपका छोटापन राह में खड़ा हो अर्थ का अनर्थ कर देता है। या फ़िर ये वक्त कि बात होती है। एक समय के बाद आपके दर्द सिर्फ़ आप पर छोड़ दिए जाते हैं। यही रीत है इस दुनिया की, मुझे तो यही लगता है की ये दुनिया दिखावा पसंद करती है। किसी को आपके दर्द का एहसास तब तक नही होता है जब तक उन्हें हम अपने घाव न दिखाएं। जब मै ये कहता हूँ तो रगों में बहता खून सर्द होने लगता है, जमने लगता है। जाने क्यूँ? पर क्यों हम किसी को ग़लत समझते हैं...? जरा सोचिये...क्या ये सही नही है? क्या जरुरी है कि हमेशा अपनी मोहब्बत दिखाई जाए? उन खास लोगों के लिए इज्जत का नजराना पेश किया जाए? बार बार सबके सामने एहसासों को बाजारू बना दिया जाए? हर कोई एक सा नही होता। तो क्या जरुरी है ख़ुद को खोलना?
... मुझे तो कभी कभी ऐसा ही लगता है। आपको?

Tuesday, September 16, 2008

उनकी अनकही....


बंगलुरु, अहमदाबाद के बाद अब दिल्ली भी दहल गई। और तो और गुप्तचर एजेंसियों की चेतावनी के बाद हुए सीरियल ब्लास्ट। कितनी आसानी से २५ लोगों ने जान गँवा दी और सैकड़ों लहूलुहान होकर अपनी किस्मत पर रोते रह गए। बेचारे बुजुर्ग कोरों से आँसू तक न निकला जवान बेटे का हाल देखकर। बच्चे अपने पापा का इंतजार करते करते सो गए लेकिन पापा तो अस्पताल पहुँचे। गलती किसकी है? सुरक्षा के इस कदर कड़े इंतजाम के बाद भी इतनी बड़ी चूक का जिम्मेदार किसे ठहराया जाए? किसके पास है इन सवालों के जवाब? सुरक्षा एजेंसियों के पास? उनका काम तो लगता है चेतावनी देना भर रह गया है। जब दिल्ली का सीना धुआं-धुआं हो उठा तब ये एजेंसियाँ कहाँ थीं? और पुलिस? पता नहीं। राजनेताओं ने भी ३० सेकंड की प्रेस कॉन्फ्रेंस में रटी बातें दोहरा दीं। उनका क्या जाता है? जेड़ सिक्यूरिटी में उनको कोई डर नहीं है। मंत्रीजी का तमगा भी तो है। बयानबाजी सबको आती है लेकिन न सुरक्षा एजेन्सी बोलेगी न ही मंत्रालय इस हादसे का जवाब से पाएगा। मीडिया को भी टीआरपी की पड़ी है। हर कोई एक्सक्लूसिव खोजने में जुटा है फ़िर चाहे उसके लिए सामाजिक दायित्वों का गला ही क्यो न घोंटना पड़े। इन जिम्मेदारों में किसीने उनका दर्द महसूसा जिनके लोग शोपिंग के बाद घर नहीं गए। जो ऑटो से उतरने से पहले ही सफर को अलविदा कह गए। उनके परिवार की आंखों में फूटते सवालों का कोई जवाब है? कोई जवाब हो तो दीजिए।!!!!!!!टीआरपी और सिर्कुलेशन के परे इंसानियत भी एक चीज़ होती है। कभी सोचिएगा! कोई जवाब हो तो जरुर दीजिएगा! मुझे भी ख़ुद को भी।

उनकी अनकही

Saturday, September 13, 2008

आज कल कुछ अनकही .....


Kai dino se soch raha tha ki patrakaron ka kaam kya hota hai? kya ye ek aisa proffesion hai jahan aap auron se behtar samajhte hain khud ko...complacency lani padti hai ki khud hi aa jati hai..aap kise khush karne ki koshish karte hain? khud ko kar pate hain? jo khud ko bahut bada top samjhte hain wo kitna khush hain apne kaam se? unki jindgi kaisi hai? fir woh print ke hon ya electronic ke,, koi farq nai padta hai janab..khali hai...sab khali hai...kahi trp to kahi circulation ka khel hai....aur hum sab us khel ke liye pyade mukarrar kiye gaye hain...kabhi nai socha tha ki hum jis patrakarita ke sapne sanjote the wo is kadar mitti me mil jayenge...aur rah jayenge to sirf gubar aur khwab...????
antas viram...........

आज कुछ छिपता नहीं


लगता
है सब कुछ दिखने लगा हैभविष्य, भूत...सब कुछकुछ नहीं छिपता है हमसे और ही इस दुनिया सेफ़िर भी सब कोई अपना अपना चेहरा कैमरे के सामने से हटा रहा हैअब कोई माइक पकड़ने को तैयार नहीं है

Thursday, September 4, 2008

अनकही

सबके मन में ऐसी बातें होती हैं जो वे किसी से कह नही पाते..कोई सुनना नहीं चाहता तो किसी को हम सुना नहीं पाते...यही तो है अनकही!
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