Wednesday, February 15, 2012

दफ्तर से तुम्हारे हॉस्टल की वो दौड़



फोटो गूगल से साभार 

जाने क्यूँ...
आज याद आ रही है 
दफ्तर से तुम्हारे हॉस्टल की वो दौड़ 

वो शीशे-संगमरमर का ताजमहल, 
चंद पन्नों में प्यार को समेटने की वो होड़
वो उम्र से आगे भागते सपने 
दिल से दरकती वो धड़कन...

वो ऑटो की किचकिच, सड़कों पे शोर 
हमारी आशिकी का वो सुनहला सा दौर
वो रूठना तुम्हारा, मेरा कहना वंस मोर 
मेरी मैटिनी शो की वो प्लानिंग 
तुम्हारा कहना, च्वाइस इस योर्स 

जाने क्यूँ...
आज याद आ रही है 
दफ्तर से तुम्हारे हॉस्टल की वो दौड़ 

वो वेलेंटाइन्स डे की भोर,
और मेरे सेल फोन का वो शोर  
वो मिस काल की लिस्ट में, 
प्यारा सा तुम्हारा वो नाम हर ओर...
वो मानाने की तुमको कोशिश पुरजोर 
गुस्से में तुम्हारा कहना 
यु डोंट लव में एनीमोर 

जाने क्यूँ...
आज याद आ रही है 
दफ्तर से तुम्हारे हॉस्टल की वो दौड़ 

1 comment:

Rashmi said...

Such fluid expression

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