फोटो गूगल से साभार
हे मतदाता महान,
फिर से छिड़ चुका है चुनावी संग्राम.
तुम बदल सकते हो जहान,
लेकिन क्योंकि तुम वाकई हो सूबे के मतदाता नादान,
इसलिए तुमसे कोई नहीं है हलकान!
देखो तुम कितने हो भोले-अनजान,
कि मैदान में फिर उतरे हैं प्रत्याशी अपराध के पर्याय समान!
फिर से तुम्हारे गली-दालान में गूंज रहे हैं बाहुबलियों के गुणगान!
अब भी तुम बंद रखना अपने कान.
नहीं रुकेगा तुम्हारा काम!
वोट डालना हो जिस दिन, तुम उस दिन करना आराम!
बने रहना तुम आम!
बड़े जतन से बन पाए हो तुम विद्वान,
सो मत करना खुद को बदनाम!
जागने का तो तुम मत लेना नाम,
ताकि, इस बार भी जीत जाए कोई प्रत्याशी बलवान!
अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, अमरमणि त्रिपाठी,
विजय मिश्रा जैसे अपराधियों की फौज को तुम ठोकना सलाम!
विधानसभा में लगने देना तुम लाल निशान.
फिर से चढऩे देना अपराध को परवान!
अच्छा है, सोते रहो,
सूबे के मेरे मतदाता महान!
नाराज न हो तो अब पूछ लूं तुमसे कुछ यक्ष प्रश्न यजमान!
क्या तुम वाकई हो सच से अनजान?
या तुम हो कुछ ज्यादा ही होनहार बिरवान?
छोटे-छोटे काम के लिए कब तक देना चाहते हो रिश्वत रूपी लगान?
वो जेल से लड़ते हैं, वो इज्जत लूटते हैं,
वो हत्या करते हैं, वो सूबे को लूटते हैं,
वो ही हैं जो खाते हैं तुम्हारे खेत-खलियान,
वो ही तो हैं जिससे है तुम्हारा सूबा बदनाम,
फिर भी आखिर क्यों दिलाते हो तुम उनको मनचाहा मुकाम?
क्यों कर रहे हो सूबे का काम तमाम?
तुम्हें अंदाजा है कि क्या होगा इसका अंजाम?
हे मेरे सूबे के मतदाता महान!
मत करो जम्हूरियत का अपनान.
जवाब देना है तो कूड़ेदान में थूक दो मुंह में रखा पान.
या इसके लिए भी टीवी पर बोलें आमिर या शाहरुख खान?
मत लो जम्हूरियत का इम्तेहान.
रहने दो इस देश को महान.
बेशकीमती 'मत' को यूं ही मत दो तुम दान.
पांच साल बाद आया है ये मौका, बाद में मत लगाना तुम हम पर इल्जाम...
मत कहना कि हमने नहीं बजाया था अलार्म.
एक गलती का भुगतोगे पांच साल परिणाम...
निद्रा के अनुगामी हे मतदाता महान,
भूल चूक माफ, तुम्हे मेरा शत-शत प्रणाम...
(मतदाताओं से नहीं है मेरा कोई बैर,
लेकिन चुनाव नहीं जीता जाता उनके बगैर.
और ऐसे में जब जीत का परचम फहराते हैं लुटेरे-लाखैर,
तो हक है मुझे भी अपनी बात को कहने का,
आखिर मैं भी नहीं हूं कोई गैर.)
(द संडे इंडियन में प्रकाशित)