बीते दिनों कथादेश के मीडिया वार्षिकी अंक के लिए ये लेख लिखा था. आज सुबह दिलीप मंडल जी का मेल आया कि वो इसे इस्तेमाल नहीं कर पाए हैं. अब ब्लॉग पर ही डाल रहा हूँ.
मन करता है, पूछूं उनसे
सच क्या है, जानते हो
नैतिकता बला क्या है
क्या इसे पहचानते हो
पर्दे पर तो खूब चहकते
क्या मीडिया धर्म जानते हो...
ओपेन और आउटलुक मैग्जीन में प्रकाशित राडिया टेप्स के सनसनीखेज खुलासे के बाद मीडिया पर कई सवालिया निशासन खड़े हो गए हैं। मीडिया की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर भी कलंक लगा है। सबसे शर्मनाक बात यह सामने आई है कि जिन दिग्गज पत्रकारों को युवा अपना आदर्श मानते रहे हैं, आम आदमी उनकी बात को सुनकर अपना ओपिनियन बनाता रहा है, उनमें से ही कई बेनकाब हो गए हैं। अब उनके एकदम अलग ही चेहरे नजर आ रहे हैं। ओपिनियन लीडर्स माने जाने वाले इन सो कॉल्ड सच्चे पत्रकारों के इस चेहरे ने हम सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है। मेरे मन में भी कई सवाल हैं जिनका जवाब मैं इन पत्रकारों से ही जानना चाहता हूं। हालांकि ये भी जानता हूं कि इनका जवाब किसी भी हालत में मुझे संतुष्ट नहीं कर पाएगा। न ही संतुष्ट कर पाएगा उन हजारों-लाखों लोगों को जिन्होंने इन पत्रकारों से कुछ उम्मीद संजोयी थीं।
मैंने हमेशा बरखा दत्त, वीर सांघवी, प्रभु चावला को निष्पक्ष पत्रकारों की श्रेणी में रखा, इनके लेखों में देशहित की भावना को महसूस किया और टीवी स्क्रीन पर इनके तेजतर्रार और बेबाक सवालों को सलाम किया। हमेशा इनके ही मंुह से नैतिक जिम्मेदारी की बड़ी बड़ी बातें सुनीं। अक्सर किसी विवाद में फंसे पब्लिक फिगर के लिए। मुझे आज भी ध्यान है जब अमिताभ बच्चन ने गुजरात का ब्रांड अम्बेस्डर बनने का ऑफर स्वीकार किया था, मीडिया एक स्वर में उनकी आलोचना कर रही थीं। क्या अखबार और क्या टीवी चैनल्स। खास बात ये थी कि इन पत्रकारों ने भी किसी न किसी फोरम पर अमिताभ की आलोचना की थी। सब खुद को राष्ट्रवादी बताते हुए अमिताभ को यह याद दिला रहे थे कि उनकी भी पब्लिक फिगर होने के नाते एक नैतिक जिम्मेदारी है। नैतिक जिम्मेदारी याद दिलाने का यह सिलसिला बहुत पुराना है और ये पत्ता मीडिया के ये दिग्गज पत्रकार प्रधानमंत्री के साथ खेलने में नहीं चूकते। हाल ही में टूजी और कॉमनवेल्थ घोटालों को लेकर भी मीडिया ने प्रधानमंत्री के सामने कई बार प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से नैतिक जिम्मेदारी लेने की बात कही। अब सवाल यह उठता है कि क्या इन पत्रकारों की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं है...इस खुलासे के बाद। अगर इनमें जरा भी सच्चाई है तो इन्हें अपने गौरवान्वित पदों से तुरंत ही इस्तीफा दे देना चाहिए और जांच पूरी होने का इंतजार करना चाहिए, लेकिन मेरी जानकारी के मुताबिक बरखा दत्त आज भी एनडीटीवी के अंग्रेजी चैनल की ग्रुप एडिटर पद पर काबिज हैं, वीर सांघवी भी हिंदुस्तान टाइम्स के एडिटोरियल डायरेक्टर के रूप में काम कर रहे हैं और प्रभु चावला इंडिया टुडे ग्रूप से जाने के बाद चेन्नई के दि न्यू इंडियन एक्सप्रेस अखबार के एडिटर इन चीफ हैं। क्या ये लोग कैमरे के सामने ही पत्रकारिता के मूल्यों की बात करते हैं? क्या कैमरे के पीछे इन पत्रकारों के पैर भी भ्रष्टाचार के दलदल में अंदर तक धंसे हुए हैं?
इसके अलावा एक और दिग्गज पत्रकार का नाम सामने आया है, एमके वेणू का। जब नीरा राडिया से उनकी बात हुई थी, उस समय वो इकोनॉमिक टाइम्स के संपादकों में से एक थे। आजकल ये महानुभाव फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मैनेजिंग एडीटर हैं।
इतना ही नहीं, आउटलुक की वेबसाइट पर उपलब्ध राडिया के कॉल रिकार्ड्स पर नजर डालें तो बरखा दत्त और वेणू के अलावा कई और पत्रकारों का भी नाम बार बार सामने आता है। समझ नहीं आता कि एक पत्रकार को राडिया जैसी पीआर पर्सन से इतनी बात क्यों करनी पड़ी। इन नामों में इकोनॉमिक टाइम्स के जी गणपति सुब्रमण्यम का नाम बहुत बार आता है। उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश यहां डाल रहा हूं ताकि पता चल सके कि एक पत्रकार कैसे अपने काम को करता है-
Ganapathy Subramanaim(Ganu) to Niira Radia— Did you see all the crazy things they were doing today. Ask the media they will tell you.They were passing on all the car numbers to everybody.
Radia to Ganu—- Yeah, yeah, we are not bothered.— You know Ganu, we have taken a decision, Mukesh(Ambani), was in town, he has told us, ignore ET(Economic Times, ET Now). If they behave like idiots, let them, just ignore them. Talk to only those who matter. Barring you(Ganu) and Venu and TK, we are not going to, Soma and they had come, they talked a load of nonsense with Manoj Modi, and, quite frankly if they want to behave like a tabloid, let them behave like that.
Ganu to Radia—an—d, an—d , aaah, somebody is passing on information everywhere, I don’t know how, what.
Radia to Ganu— like?
Ganu to Radia— Like who are all meeting Manoj( Warrier or Modi?), and like all those things you know.
Radia to Ganu— That AP CMs, letter I will give you, but not now.
Ganu to Radia— yeah, yeah, no problem, no hurry.
Radia to Ganu— I wont give if its not front page news. —– General you will ensure it na?
Ganu to Radia— yeah, yeah, yeah
इसके अलावा राडिया से सीएनएन आईबीएन के राजदीप सरदेसाई, पीटीआई के राकेश हरि पाठक, ईटी नाउ के ई श्रीधरन, इकोनॉमिक टाइम्स के राहुल जोशी व रश्मि और टाइम्स ऑफ इंडिया के जयदीप बोस की भी बात हुई थी, वजह जो भी रही हो लेकिन मेरी समझ से एक पीआर पर्सन इतना अहम नहीं हो सकता कि इतने पत्रकारों का उससे बात करना जरूरी हो जाए।
मैंने राडिया से बरखा, वीर, प्रभु और वेणू, सबकी बातचीत सुनी फिर एक एक कर सबके लेख फिर से खोजे जिसमें उन्होंने किसी न किसी रूप में आदर्शों और मूल्यों की बातें की हैं। बरखा जो टीवी पर नजर आती हैं, जो वो अपने ब्लॉग पर लिखती हैं और जो वो राडिया के साथ बातों में नजर आती हैं, यकीन नहीं होता कि एक वक्त ये महिला पत्रकार कभी मेरी आदर्श हुआ करती थी। वीर सांघवी हिंदुस्तान टाइम्स में म्यूजिक पर एक से एक लेख लिखते थे, एनडीटीवी पर अपने शो में व्यूअर्स को बांधे रखते थे और सरोकार से जुड़े मामलों पर बेबाक राय देते थे लेकिन फिर जब मैंने राडिया से उनको कहते सुना कि मैं तो पूरा शो ही स्क्रिप्टेड कर दूंगा, बाकायदा रिहर्सल करूंगा तो उनका दूसरा चेहरा भी बेनकाब होता रहा। प्रभु चावला के तो कहने ही क्या...पहले हिंदी न्यूज चैनल आज तक पर अपने इंटरव्यूज के बेहतरीन अंदाज से लोगों के सामने एक सच्ची छवि बना ली और आजकल ईटीवी पर एक शो कर रहे हैं। हर दूसरी पंक्ति में वो सच्चाई की बात करते हैं। कहते हैं कि बिना लाई डिटेक्टर के वो सच का पता लगा लेते हैं क्योंकि उन्होंने चालीस बरस सच के साथ बिताए हैं और मैं कहता हूं कि यही वजह है कि उनके लिए सच महज एक खेल बनकर रह गया है।
मुकेश अंबानी के लिए उन्हें राडिया से बात करनी पड़ी। उनसे कुछ ही सवाल हैं, अगर उनको इतने बरस का अनुभव है तो क्या वो नहीं जानते थे कि राडिया क्या है? क्या वो नहीं जानते थे कि वह किस तरह एक बिजनेस घराने के फायदे के लिए कॉरपरेट लॉबीइंग कर रही है? क्या उन्हें अंदाजा नहीं था कि राडिया मीडिया को कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर रही है? फिर आखिर राडिया क्यों? आखिर मुकेश अंबानी की इतनी फिक्र क्यों सता रही थी उन्हें? एमके वेणू की बातचीत ने तो मुझे झकझोर ही दिया। मीडिया को कैसे इस्तेमाल करना है, कैसे खबर करवानी है और कैसे पूरे सिस्टम से खिलवाड़ करना है, ये राय दे रहे थे महानुभाव राडिया को। एक पत्रकार होने के नाते उनका क्या यही कर्तव्य था कि वो बात बात पर मीडिया का ही मजाक बना रहे थे? सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि जो व्यक्ति खुद लॉबीइंग में जुटा हुआ है वो खुद ही मीडिया एथिक्स का भाषण भी दे रहा है। वाह वेणू जी। आप जैसे दोयम दर्जे के पत्रकार ही मीडिया का नाम रोशन कर रहे हैं। इन सभी पत्रकारों को देखकर किसी की कही एक बात याद आ रही है-
हर शख्स में होते हैं दस बीस चेहरे
जिसे देखो बार बार देखो...
अब चर्चा करूंगा एक ऐसी शख्सीयत की जो टीवी चैनलों का दामाद सरीखा है। लंदन में रहकर अपने व्यंगात्मक कमेंट्स और हाजिरजवाबी के लिए वो एनडीटीवी और टाइम्स नाउ जैसे चैनलों पर अक्सर नजर आते हैं। कभी कभी स्टूडियो में भी दिखते हैं। खुद को मैनेजमेंट गुरू और विश्लेषक कहने वाले ये महाशय हैं सुहेल सेठ। कई फिल्मों में भी नजर आ चुके हैं। देश, राजनीति और अर्थव्यवस्था को लेकर इनके भाषण सुनकर एक अच्छी सी फीलिंग आती लेकिन राडिया से इनकी बातचीत सुनकर इनका भी एक अलग चेहरा सामने आ गया। दोगलों की लिस्ट में इनका नाम भी काफी उपर ही रहना चाहिए। लगता है न्यूज को भी ये फिल्म समझते हैं। कैसे बिजनेस घरानों से संबंध मजबूत करने हैं, अपने फायदे और लॉबीइंग के लिए इन भाषणवेत्ताओं ने सारे आदर्शों, सारे मूल्यों को ताख पर रखकर पत्रकारिता को शर्मसार किया है। हालांकि यह भी जानता हूं कि ये लोग आज चोर इसलिए कहे जा रहे हैं क्योंकि इनकी चोरी पकड़ी गई है। इस बात का अंदाजा है कि मीडिया किस कदर व्यावसायिक लालचियों के इशारे पर ब्रेक डांस कर रही है। यही हाल पत्रकारों का भी है। पैसा देखकर सभी अपने अपने मूल्यों और आदर्शों को नाले में बहा देते हैं। फिर भी, चोर तो वही है जिसकी चोरी पकड़ी गई। आखिर हमारा संविधान भी तो ऐसा ही है।
भले ही ये पत्रकार अपनी नैतिक जिम्मेदारी न लें लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हम इन्हें माफ नहीं कर सकते। न ही किसी ऐसे पत्रकार को माफ करेंगे जो पत्रकारिता को कोठा समझते हैं और अपनी कलम और जुबान को निजी फायदों के लिए वेश्या की तरह इस्तेमाल करता है। अपने सवाल और बात को खत्म करने से पहले मैं इन सभी महानुभावों के लिए कुछ पंक्तियां लिखना चाहता हूं जिन्हें मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई के दिनों में कहीं पढ़ा था-
कली बेच देंगे, चमन बेच देंगे
ये फूलों भरी अंजुमन बेच देंगे
कलम के सिपाही अगर सो गए तो
सत्ता के ताजिर वतन बेच देंगे...
References:
Barkha Dutt: http://www.barkhadutt.tv/
Vir Sanghvi: http://www.virsanghvi.com/about-vir.aspx
Prabhu Chawla: http://prabhuchawla.com/
MK Venu: http://www.financialexpress.com/news/mk-venu-is-managing-editor-fe/527318/
Conversation between Radia and Venu: http://business.outlookindia.com/view.aspx?vname=Vinu-fudged%20RCOM%20figs-gas-Curse%20%on%20%AmarSingh-20090616-200515.wav and http://business.outlookindia.com/view.aspx?vname=Imp%20%MK%20Vinu-20090709-084733.wav
Conversation between Radia and Barkha: http://business.outlookindia.com/view.aspx?vname=MM%20n%20Barkha%20-20090709-161411.wav
Conversation between Radia and Prabhu: http://business.outlookindia.com/view.aspx?vname=IMP-Prabhu%20Chawla%20Gas%20judgement%20discussion-20090620-143207.wav
Conversation between Radia and Vir: http://business.outlookindia.com/view.aspx?vname=Vir-his%20letter-MDA%20interview-20090620-120959.wav
Coversation between Radia and Ganu: http://www.outlookindia.com/article.aspx?268465
Cal records of Radia: http://www.outlookindia.com/article.aspx?268214