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तमन्ना भी साथ थी, कोशिश भी थी जवां,
राहें भी साथ थीं, मंजिल भी मेहरबां।
खुद में हौंसला, उसकी नेमत पे था यकीं ,
लौ जल रही थी अबकी, बाती भी थी बची।
फूंक के भी जर्रों, पर रोक थी लगी,
फिर भी वो बुझ गई, मायूस हो गई।
मैं देखता रहा, आंसू पोंछता रहा,
सॉरी बोलकर उसने, कर दिया विदा।
बेबसी में रोया, उस बरस का रतजगा॥
गिरेबां में झांक लेता, वो भी था ''मैं'' कभी,
आज वो न जाने किस माटी का बना।
मैं धरती से उठा था, धरती पे आ गिरा ,
नापने को फिर से सारा आकाश है पड़ा ।
फिर पंख मैं चुनुँगा, परवाज मैं भरूँगा,
आँधियों में भी लौ को, बुझने मैं न दूंगा।
वक़्त भी कभी तो, हमसे रास्ते पूछेगा,
वो भी अपनी बाजुओं में, आंसू पोंछेगा॥
(माफ़ करना दोस्तों, क्या करूँ, कंट्रोल नहीं होता...दर्द है तो दर्द ही नजर आएगा न!)