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कस्बे में मुनेरका मामले पर हो रही बहस पर नजर पड़ी। दिमाग में वो तसवीरें घूमने लगीं जब मैं दिल्ली और मुंबई गया था। दोस्तों, लोगों की एक एक बात दिमाग में फ़िर दौड़ने लगीं। लिखते हुए शर्म आ रही है पर लड़कियों का जो चरित्र चित्रण यहाँ किया गया था वो वाकई शर्मनाक और एक बेहूदा सोच का परिचायक था। मैं दिल्ली पहली बार गया था, जानने की इच्छा भी थी कि आख़िर कैसा होता है रेड लाइट एरिया। और उससे जुड़े तमाम पहलुओं को जानने की इच्छा थी।
लेकिन परवरिश कुछ ऐसी थी कि कभी किसी लड़की को उस निगाह से देखने की हिम्मत नहीं हुई न ही कभी ऐसे किसी एरिया में गया
। मुझे अपनी सीमाओं का आभास था। पर मन में कहीं न कहीं वो इमेज जरुर थी जो मैं यूपी से लेकर वहां गया था। लोगों कि निगाहों में झांकता तो वो किसी लड़की के कपडों में झांकती मिलतीं। मैं ये नहीं कह सकता कि वो यूपी के थे या कहीं और के।
एक दिन बस से अपने रिश्ते दार के घर सरोजनी नगर जा रहा था तभी एक बुजुर्ग ने किसी लड़की को छूने कि कोशिश की, या शायद छू दिया था, वो लड़की बरस पड़ी। मेरी नजर पड़ी तो लड़की के कपड़े थोड़े तंग थे और बुजुर्ग उनके पीछे खड़े गलियां बक रहे थे। थोडी देर में हर निगाह लड़की पर थी और
लड़की को बस से उतरना पड़ा। अगले दिन मैं सरोजनी नगर मार्केट में निकला तो कुछ लोगों ने बताया वहां जो लड़कियां खड़ी हैं वो चलने को तैयार हैं, कुछ इशारे होते हैं
और मैंने कुछ लड़कों को उनकी तरफ़ इशारे करते देखा भी। मुनेरका में मेरे दोस्त रहते हैं, उनसे बात होती है तो वो भी कुछ ऐसा ही बताते हैं। उनकी बातों से भी नॉर्थ ईस्ट की लड़कियों की इमेज कुछ ऐसी ही मालूम पड़ी। सच मैं नहीं जनता पर ये जरुर जनता हूँ कि सारा खेल मर्द के हवस का है। हर लड़की को गन्दी निगाह से देखते हैं। काफी हद तक लड़कियां जानती भी हैं। इसके लिए वो किसी का सहारा लेती हैं तो वो टैक्सी कहलाती हैं। सच है। दोयम दर्जे की
सोच का नतीजा है सब।
मुंबई में जो वाकया हुआ वो और भी शर्मनाक था। और ये हरकत एक पढ़े लिखे और समझदार व्यक्ति ने की थी। मैं किसी सिलसिले में कुछ लोगों से मिलने गया था। वहां यूपी के भी कुछ लोग थे। मेरी उनसे ठीक ठाक जान पहचान हो चुकी थी। थोडी देर वो कहीं गायब रहे। थोडी देर बार लौटे। उन्होंने जाने कब एक लड़की से होटल में साथ चलने की बात कह दी, और बड़े गर्व से कहानी बताई। उनके शब्द आज भी कानों में हैं, 'वो ऐसे देख रही थी जैसे...............मैंने पूछ लिया तो शरमा गई.' सोचा जा सकता है कि क्या हालत होती होगी उनकी हर दिन जब वो इस अरबों के देश में एक मुकाम कि तलाश में निकलती हैं....?
लड़की को पता नहीं क्या
समझा जाता है यहाँ, मर्द की निगाह अगर गन्दी है तो वो नॉर्थ ईस्ट की हो या मुंबई और दिल्ली की, हर लड़की
आवारा नजर आती है। अगर ऐसा न हो तो लोगों की हिम्मत न हो किसी लड़की को छूने की। पर ऐसा होता है। एक लड़का जब घंटों फ़ोन पर लगा रहता है तो मां बाप भी कुछ नहीं कहते पर वही काम जब एक लड़की करती है तो वो आवारा हो जाती है. मुझे तो इस पेशे से जुड़े उन लोगों पर भी शर्म आती है जिन पर सोशल रेस्पोंसिबिलिटी आम लोगों से कहीं ज्यादा है हर वो भी अपनी नजर का इस्तेमाल करने से नहीं चुकते... वो भी इस काम में जोर शोर से लगे हुए हैं... ज्यादा कहने कि जरुरत नहीं..सब समझदार हैं। उनका बस चले तो....जाने दीजिये..