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याद कीजिए, जब आपने बोलना सीखा था. पहला शब्द क्या कहा था? जाहिर सी बात है मां या पापा ही बोला होगा. फिर हर बात पर सवाल पूछने का सिलसिला शुरू हुआ होगा, जिसका अहसास हमें भले ही ना हुआ हो पर मम्मी-पापा हर किसी रिलेटिव से यही कहते थे मेरा बच्चा तो बहुत सवाल पूछता है. उस वक्त हर एक बात के लिए हमारे जेहन में सवाल होते थे. रोड पर घूमते वेंडर्स और हॉकर्स हों या फिर मंदिर में पूजा करते पुजारी, सबके लिए हमारे पास सवाल होते थे. हम चाहते थे कि सच जवाब मिले, जो संतुष्ट करे.
जैसे-जैसे हमारा शरीर विकसित होता है और हम बाहर की दुनिया को देखने-समझते हैं, ढेरों सवाल भी खुदबखुद अपना वजूद पुख्ता करते जाते हैं. कभी सवाल टीचर्स की मार का सबब बनते हैं तो कभी शाबाशी भी दिलाते हैं. पर जहां तक मेरी समझ है, सवाल जिंदगी के लिए बहुत अहम होते हैं. जब तक सवाल हैं, जिंदगी जीने की एक वजह रहती है और अगर सवाल खत्म हो जाएं तो शायद जिंदगी में रस कम हो जाता है. सवाल ही हैं जो तरक्की का रास्ता दिखाते हैं, राहों पर आने वाली प्रॉब्लम्स से जूझने की हिम्मत देते हैं. यकीन मानिए जवाबों की तलाश बहुत ही एडवेंचरस होती है, कभी डूबिए सवालों में, उसका मजा कुछ और ही है.