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आज मैं एक नए घर का सदस्य हूँ. थोड़ा छोटा है॥ यहाँ कुछ पुरानी बातें याद आ रही हैं,
आइये चलते हैं चंद यादों कि सैर पे.........
मेरे पुराने आशियाने में ये बात बहुत प्रचलित थी। द शो मस्ट गो ऑन वाली बात। मुझे लगता था बात तो सही है लेकिन कुछ तो असर होता होगा। लेकिन किसी ने कुछ भी किया हो मैंने तो दिल से चाहा था इस जगह को। शायद कुछ लोग मेरी खुशी से नाखुश थे। उन्होंने तोड़ने की कोशिश की, लोगों ने देखा, उनका साथ भी दिया और आख़िरकार मैं टूट गया। मन से नहीं। बस उनसे टूट गया। मुझे दुःख हुआ। रोना भी आया। पर वहां तो मुझसे अलग होने का कोई गम नहीं था। न कोई रोया न कोई हँसा। जिसने आंसू बहाए वो तो अपना था ही। तो मई भी क्यों आंसू बहता. क्या मेरे आंसुओं का कोई मोल नहीं है. शायद मैंने उस जगह को दिल दे दिया था। लग
कर मेहनत की थी। कुछ आशा थी। उन्होंने वो भी तोड़ दी। लगा जैसे मुझे किसी ने ठग लिया हो। हो सकता है उन्हें भी ऐसा लगा हो की मैंने उन्हें ठग लिया। पर बातें ठगने से ज्यादा आगे जा चुकी थी। शायद किसी ने ये जानने की कोशिश नहीं की होगी कि मैंने किन हालत में वो निर्णय लिया होगा। कुछ भी हो, आज जो कुछ भी हूँ उन्ही कि बदौलत हूँ। ये बात मानने में मुझे कोई गुरेज नहीं है।
खैर आज मैं नई जगह हूँ, ओहदा थोड़ा बड़ा है, लोग भी अच्छे ही हैं। वहां भी काफी कुछ सीखा था यहाँ भी सीख रहा हूँ। हाँ यहाँ एक काम नहीं कर रहा हूँ...रिश्ते नहीं बना रहा हूँ.
शायद हिम्मत नहीं बची है अब. या यूँ समझिये कि ग़ालिब दुनिया कि रीत समझ चुका है. शायद आज के बाद किसी पे यकीं न करूँ, जरुरत भी नहीं है। बाकी तो बहुत कुछ है पर मेरी इस अनकही का जवाब वक्त दे यही बेहतर होगा।