tag:blogger.com,1999:blog-7312564470184504161.post4683146982700072405..comments2023-10-20T16:06:30.577+05:30Comments on अनकही बातें: ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या होNikhil Srivastavahttp://www.blogger.com/profile/09127448331855827801noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-7312564470184504161.post-49469980348753322122009-07-13T10:27:43.117+05:302009-07-13T10:27:43.117+05:30कल बैठ के यू ही कुछ लिखने का मन किया. पता नहीं क्य...कल बैठ के यू ही कुछ लिखने का मन किया. पता नहीं क्यों इच्छा हुई की इसे तुम्हे भेजू.<br />---------------------------------------------------------------------------------------------<br />कभी कभी पता नहीं चलता है और ज़िन्दगी कहाँ कहाँ ले जाती है. हम सब इस ज़िन्दगी के पीछे जान दे देते है जैसे की इसे जीते हम हो. जाने क्यों कभी कभी ये महसूस होता है की मैं मैं ही नहीं हूँ. आखिर ये मैं है क्या? मैं हूँ क्या? लगता है की जैसे मैं अपने नहीं किसी और के शरीर में जी रहा हूँ. जब भी गौर से देखता हूँ तो लगता है जीवन एक चलचित्र है और मैं, पता नहीं मैं इसमें क्या हूँ. शायद कुछ भी नहीं जीता ये शरीर है, भोगता ये शरीर है. सुख है तो शरीर दुःख है तो शरीर. इस सब में मैं कहाँ हूँ? नहीं पता. मैं इस शरीर के सुख दुःख के चक्कर में मरा जा रहा हूँ. करता ये शरीर है पर झेलता मैं हूँ. अगर मैं इस शरीर में न होकर (जो कि इस समय इस पांच सितारा होटल में बैठ कर कुछ लिख रहा है) कहीं किसी और शरीर में होता, किसी और देश में होता तो? तो शायेद मैं वो ज़िन्दगी जी रहा होता. मैं उस शरीर के पीछे मर रहा होता. बात वही रहती, भोगता शरीर पर मरता मैं. तो? हाँ सब कुछ वैसा ही रहता लेकिन प्रारब्ध नहीं बदलता मेरे उस शरीर में होने से. मेरा वो शरीर यहाँ नहीं होता बल्कि मैं वहां होता. बात फिर भी वाही है, प्रारब्ध हर शरीर के साथ होता है. मैं इस शरीर के पीछे भले ही मरा जाऊं लेकिन इस शरीर का प्रारब्ध इसे वही ले जाएगा जहां जाना होगा. इसे वही सब कुछ देगा जो मिलना होगा. यही जीवन है यही प्रारब्ध है. बेहतर यही है कि मैं जीना शुरू करुँ. शरीर को तो जहां जाना होगा जाएगा परन्तु इसके भोग के पीछे नहीं मरा जा सकता. जीवने चलते रहने वाली वस्तु है. जब मैं शरीर हो जाता हूँ तो मरने लगता हूँ और जब मैं मैं रहता हूँ तो जीता तो नहीं पर मरता भी नहीं. और ये जो जीवन मरण से ऊपर की वस्तु है ये प्रथम सीढी है. कह नहीं सकता क्यों लेकिन इतना पता है कि नीचे आते भी डरता हूँ तो ऊपर भी नहीं जाना चाहता हूँ. क्यों? ये पता नहीं. शायद जानता हूँ कि ऊपर जाने के बाद कुछ जानना शेष नहीं रहेगा और जब कुछ शेष नहीं रहेगा तो सब समाप्त हो जाएगा. पर ये समाप्ति ही समाप्ति नहीं है वर्ना हर पल कोई ना कोई ऊपर कि तरफ न बढ़ रहा होता. ये तो नयी शुरुआत है. शायद इसी को जीवन वृत्त कहते है....Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14701067974583476216noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312564470184504161.post-12753681209908110542009-07-13T10:26:35.454+05:302009-07-13T10:26:35.454+05:30गुलाल का ये गीत प्रशान्त के ब्लोग पर पढ़ा/सुना था....गुलाल का ये गीत प्रशान्त के ब्लोग पर पढ़ा/सुना था.. बहुत सुन्दर..रंजनhttp://aadityaranjan.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312564470184504161.post-89631374455361994882009-07-13T07:22:52.153+05:302009-07-13T07:22:52.153+05:30आनन्द आ गया!!आनन्द आ गया!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312564470184504161.post-52248946296114124772009-07-12T20:03:27.174+05:302009-07-12T20:03:27.174+05:30दिल खुश हो गया...दिल खुश हो गया...तीसरी आंखhttps://www.blogger.com/profile/11647990454094269194noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312564470184504161.post-14622630435827934872009-07-12T19:33:11.226+05:302009-07-12T19:33:11.226+05:30ख्वाहिश में लिपटी ज़रूरत की दुनिया ओ दुनिया
है इंसा...ख्वाहिश में लिपटी ज़रूरत की दुनिया ओ दुनिया<br />है इंसान के सपनों की नीयत की दुनिया ओ दुनिया<br />ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है<br />waah behtarin,shabd chayan bhav bahut hi sunder.mehekhttp://mehhekk.wordpres.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312564470184504161.post-3903963827568764392009-07-12T17:57:57.409+05:302009-07-12T17:57:57.409+05:30कुछ भी कहएं दुनिया को मगर छोडने को भी तो मन नहीं क...कुछ भी कहएं दुनिया को मगर छोडने को भी तो मन नहीं करता फिर भी ये गीत मन को भाता है आभार्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312564470184504161.post-20725687608116662132009-07-12T17:43:16.527+05:302009-07-12T17:43:16.527+05:30सुबह से गुलाल फिल्म के ही गाने सुन रहा हूँ। गजब के...सुबह से गुलाल फिल्म के ही गाने सुन रहा हूँ। गजब के सुन्दर प्यारे गाने है इस फिल्म में। दिल खुश हो गया।सुशील छौक्कर https://www.blogger.com/profile/15272642681409272670noreply@blogger.com